Friday, July 29, 2011

वक़्त नहीं

हर खुशिया है लोगो के दामन में,
पर एक हंसी के लिए ही वक़्त नहीं,
दिन रात दौड़ती इस दुनिया में
जीने के लिए ही वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का ही वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो मार चुके हम
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
अब तो वक़्त नहीं भई वक़्त नहीं..............................
गैरों की हम क्या बात करें
जब अपनों के लिए भी वक़्त नहीं
आँखों में नींद तो है
पर अब सोने के लिए भी वक़्त नहीं
दिल तो भरा है जख्मों से
पर अब रोने के लिए भी वक़्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की अब थकने का भी वक़्त नहीं,
पराएँ एहसानों की क्या कद्र करें हम
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
अब तू ही बता ऐ जिंदगी
इस जिंदगी का क्या होगा
जब हर पल मरने वालो को
जीने का भी वक़्त नहीं.............................

Thursday, July 28, 2011

मौत

कितना हौसला मिला है तेरे आने से,
अब तो मेरा ये आशियाँ सजा है,
सब कुछ लुटाने से..............
क्या बताऊँ कि
अब तो जिंदगी को भुलाए ज़माने गुज़र गए
ज़हर खाए भी ज़माने गुज़र गए
बहुत तस्सवुर मिला है तेरे लौट आने से............
सोचता हूँ जीते हुए ज़माने गुजर गए
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न आस
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
सच ही कहता हूँ अब तो हर रोज ही
फजीहत लगती थी जिंदगी
अब तो ख़त्म हुआ ये सिलसिला
ऐ मौत!तुझको पाने से ...........................

Friday, July 22, 2011

मेरी जिद है

आज कुछ कर दिखाने की जिद है,
सर्द हवाओं का रुख मोड़ लाने की जिद है....................

दीपक जलते हर आंगन में हैं,
फिर भी लोग तमस में क्यों हैं,
कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही,
आज सब कुछ बाहर लाने की जिद है............................

कल तक देखा सब कुछ,
औरों की भी सुन लिया बहुत कुछ,
देख लिया हमने वैभव भाषा का भी
अब तो फिर से तुतलाने की जिद है...........................

भूल चूका हूँ उन परी कथाओं को
जिन्हें दूंढा हर दिशाओं को,
खोया रहता इक ख्वाब परिंदों का
अब उनको फिर से पास बुलाने की जिद है...............................

सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे ,
हमको तो अच्छे लगते हैं अपने मंसूबे,
लहरें अपना नाम पता सब खो दें,
अब तो बस इक ऐसा तूफ़ान उठाने की जिद है
आज फिर कुछ कर दिखाने की जिद है......................

Tuesday, July 12, 2011

ऐ जिंदगी


थक गया हूँ चलते चलते,
अब ता उम्र सो जाना चाहता हूँ,
दो बूँद आसूं के गिराकर
ऐ जिंदगी इक बार फिर तूझे गुनगुनाना चाहता हूँ.


सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं

लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं

बिखरा पडा है तेरे ही घर में तेरा वजूद

बेकार महफिलों में तुझे ढूंढता हूँ मैं

थक गया मैं करते-करते याद तुझको,

अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ।

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा,

रौशनी दो घर जलाना चाहता हूँ।

आखिरी हिचकी तेरे जानों पा आये,
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ।

Sunday, July 10, 2011

ज़िन्दगी से मुलाक़ात कीजिये


आइये, चलिए कदम दो कदम साथ मेरे,
संग मेरे ज़िन्दगी से मुलाक़ात कीजिये
मिलकर जरा गुफ्त गूं की शुरूआत कीजिये.

जहाँ सवालों जवाबों में मशगूल है दुनिया,
कोई गुम है भीड़ में, रहता है कोई तन्हां यहाँ,
ठहरिये जरा घडी दो घडी को
कभी खुद से भी बात कीजिये.

बदन भर सजाना संवरना न काफी,
कभी आत्मा को भी अवदात कीजिये.

सफ़र की न जाने कहाँ होगी मंजिल,
कहीं दिन गुजारें, कहीं रात कीजिये.

घडी दो घडी के यहाँ हम हैं मेहमां
मेहरबान! खातिर मदारात करिए.

खुले आँख तो सब नज़ारे हवा हों,
गुरूर आप इन पर न बेबात कीजिये.

करेंगे फ़क़त आंसुओं की तिजारत
न ज़ाहिर यहाँ सबपे जज़्बात कीजिये.

सँवारे संवरती नहीं ज़िन्दगी ये
हुजूर आप ही कुछ करामात कीजिये.
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मदारात -सत्कार ; अवदात- सवारियें

Thursday, July 7, 2011

मेरी खामोशिओं को वो सजा दे जाएगी,
खामोशिओं में जीने की फिर वजह दे जाएगी,

ले गई मुझसे चुराकर जो खुद मुझको ,
एक दिन मुझको जीनें का फिर पता दे जाएगी

छेड़कर चुपके से मेरी सांसों का सोया सितार,
चिंगारियो को फिर हवा दे जाएगी

बंदिशें सब तोडकर झूठी रश्मों रिवाज का
मेरे क़दमों को एक नया रास्ता दे जाएगी

भूल ना जाऊं कहीं भूले से उसको
इसलिए अपनी चाहतों का वास्ता दे जाएगी

ए "कौशिक" क्यों ना करे दिल उस लम्हें का इंतजार
जो तबस्सुम लबों को, इस दिल को नया हौशला दे जाएगी...............
 

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