हर खुशिया है लोगो के दामन में,
पर एक हंसी के लिए ही वक़्त नहीं,
दिन रात दौड़ती इस दुनिया में
जीने के लिए ही वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का ही वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो मार चुके हम
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
अब तो वक़्त नहीं भई वक़्त नहीं..............................
गैरों की हम क्या बात करें
जब अपनों के लिए भी वक़्त नहीं
आँखों में नींद तो है
पर अब सोने के लिए भी वक़्त नहीं
दिल तो भरा है जख्मों से
पर अब रोने के लिए भी वक़्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की अब थकने का भी वक़्त नहीं,
पराएँ एहसानों की क्या कद्र करें हम
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
अब तू ही बता ऐ जिंदगी
इस जिंदगी का क्या होगा
जब हर पल मरने वालो को
जीने का भी वक़्त नहीं.............................
Friday, July 29, 2011
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