Saturday, August 20, 2011
ज़रा सोचिएं (जय भारत )
देश को जिस हवा की जरूरत थी, आज शायद वो बयार बह निकली है । जिस साधारण व्यक्ति के असाधारण प्रतिभा को केंद्र सरकार हवा की मानिंद ले रही थी, वही आज सरकार के लिए खतरे की घंटी बन चुके हैं। आज उनके समर्थन में क्या बूढ़े क्या जवान, छात्र, कर्मचारी और व्यापारी भी सड़कों पर उतर रहे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि " कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थ्ार तो तबीयत से उछालो यारो"। यहाँ निश्चित रूप से एक नयी पृष्टभूमि तैयार हो रही है । एक नयी व्यवस्था कि स्थापना का यह आगाज़ है।
ऐसे में मेरे मन में कई प्रश्न उठते हैं और मन ससंकित हो उठता है। प्रश्न यह उठता है कि ये आन्दोलन कितने प्रतिशत सफल होगी? इसके उत्तर कि गहराई में कई और सवालो का जवाब हमें देना होगा । सबसे पहले हम कितने जागरूक हैं? क्या सिर्फ एक भीड़ का हिस्सा तो नहीं बन रहे? यह आन्दोलन जिस धरातल पर तैयार हो रही है उस बिल कि जानकारी कितने लोगो को है? इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जब जब हमने अपने घरो में आग लगाईं है, तब तब उसपर दूसरों ने अपनी रोटियाँ सेकीं हैं। आज आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर चरम पर हैं । हम क्यों अपने ही घर को जलाने पर तुले हैं । आज जो ये भीड़ इकट्ठा हो रही है, उसमे कितनो को सत प्रतिशत मुद्दे कि समझ है?
इंदिरा गाँधी ने कहा था " शिक्षा वह माध्यम है जो हमें जाति, धर्म, तथा अन्य सभी बन्धनों से मुक्त करती है"। मेरा अर्थ कतई यहाँ किताबी शिक्षा से नहीं है। मै केवल यह कहना चाहता हूँ कि हम जागरूक होकर ससक्त बने और एक नए राष्ट्र निर्माण का अंग बने। आखिर कब तक हम एक चिंगारी के आस में अपने घरो में अपने आपको जलाते रहेंगे। जनमानस के उठते इस सैलाब को देखकर ये तो कहा ही जा सकता है कि कही ना कही और कुछ ना कुछ हमारे दिलो को कचोट रहा है । वर्तमान सरकार और व्यवस्था को ये तो समझ लेना चाहिए। हमे मिस्र और लीबिया कि क्रांति नहीं चाहिए क्योंकि उसके बाद का परिणाम भी तो हमे ही भुगतना है ।मै एक ऐसे व्यवस्था परिवर्तन कि बात केर रहा हूँ जिसमे हम सभी भागिदार बने और एक जागरूक भारत का निर्माण करें। हम भूल जाएँ अपनी गलतियों को लेकिन अपने आत्मा को पवित्र कर के और एक नए भारत का निर्माण करे ।
ऐसे में जरूरत है एक और जमीनी प्रयास की जिससे भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का नाश हो सकता है। इसी महौल में समाज के कुछ जागरूक लोग संगठित होकर दूसरी मुहिम भी चला सकते हैं। यह मुहिम अस्पतालों, सरकारी कार्यालयों, पुलिस थानों और अन्य उन हर प्रतिष्ठानों पर चलनी चाहिए जहां रोजाना आम जनता किसी न किसी रूप में जाने को विवश होती है। उसकी इसी विवशता का लाभ उठाकर सरकारी अहलकार हों या अधिकारी, सब ठगते हैं। इसका प्रतिकार कर समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है। इतना ही नहीं यदि अन्ना को समर्थन दे रहे लोग ही यह संकल्प लें कि वह न तो घूस देंगे और न लेंगे, तो देश में एक नई सुबह आ सकती है। यह काम बहुत कठिन भी नहीं है, जरूरत इस बात की है कि हम भ्रष्टाचार का रस्मी विरोध करने के बजाए खुद ईमानदार बनें। ऐसा होने से निसंदेह हमारा देश फिर से सोने की चिडि़या बन सकता है। गरीब-अमीर हर कोई खुशहाल होगा। समाज में बढ़ रही कटुता पर अंकुश लगेगा।
धन्यवाद्
प्रशांत कौशिक
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