मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
मैं फूलों के सेज पर सोने नहीं,
कांटो पर चलने आया हूँ
तुम मुझको ना कहो विश्राम करो,
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को अब तो तूफ़ान करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
अब तो अधर पर अंगार लेकर
पग पग पर मुश्कान लाया हूँ
अपने इस जीवन पथ में,
देखे हैं मैंने कई तूफ़ान यहाँ,
लौट गया जो भय से उनका क्या
मैं तो अब मर्घट से जीवन को बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चलाअब किस्मत से..
सौ बार हलाहल विष का प्याला पान करके आया हूँ ..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गती की मशाल आंधी में ही जलती है…
शोलो से ही श्रृंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही तो सजती है..
पग में गती आती है, छाले छिलने से..
अब तुम मेरे पग-पग पर जलती चट्टान धरो…
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
फूलों से जग आसान नहीं होता है…
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है…
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्माण वहीं पर होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे…
तुम मेरी हर बस्ती अब वीरान करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता…
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वे मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
Tuesday, September 6, 2011
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