Tuesday, September 27, 2011

चाह

मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

चाहता मैं अपने हर साथियों के साथ रहना
चाहता हर होंठ पर मुस्कान धरना।
मैं दुखो से त्रान पाना चाहता हूँ।
मैं हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...। ।

सब सुखी, सानंद हों, यह कामना है
स्नेह की वर्षा सतत, यह भावना है,
मैं तुम्हारे प्यार का वरदान पाना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

तौलते है लोग पैसे से यंहा हर चीज को
वे फलों से आंकते है बीज को।
लाभ-लोभों की घुटन से मुक्त होना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

अर्थ के सब दास दानाब बन रहे है
वाक् छल से मनुजता को छल रहे है।
मैं सहज इंसान होना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ..
. मैं तुम्हारे प्यार का भूखा अकिंचन
चाहता हूँ मीन-सा एक मुक्त जीवन
मैं तुम्हारा हो संकुं, वरदान एकल चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

1 comments:

Shamsul Qamar said...

एक धोखेबाज, मित्रता का विश्वासघाती इतनी बड़ी बातें कैसे कर सकता है? एक बार अपने गिरेबान में झाँक कर देखना. जो अपने आस पास इतनी गन्दगी इकट्ठा किये हुए है, वह बड़े लोगों के बारे में किसी बातें करता है, अगर थोड़ी सी भी अंतरात्मा में सच्चाई है तो सोचना.

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