Friday, February 25, 2011

एक इजहार

आज चलो फिर एक इजहार करता हूँ,
ए खुदा, मै तुझसे इश्क-ए-इकरार करता हूँ...
इस चमन-ए-दहर में अब किस से दिल लगायें,
चलो अब तुमसे गुफ्तार करता हूँ.................................

टुटा है ये दिल दुनिया से,
तेरा तगाफुल अब सह न पाउंगा,
जिंदगी की अब शब भी सहर गयी,
अब तो चेहरे पे तबस्सुम दे दे,
अब तो तुझमे ही फिरदौस दिखता है......
अब तो तेरे तलत-ए-मेहर का इंतजार करता हूँ....................

वो मेरा दिल ही क्या जिसकी इल्तजा तुझसे मिलने की ना हो,
मै रहगुज़र जाऊंगा अगर तू संग बन गया हो,
तू परेशां न हो और कुछ देर पुकारुंगा चला जाऊंगा,
शब-ए-तारीक गुजारुंगा चला जाउंगा,
तेरे दर पे बस ये हिज्र सह नहीं सकता,
इसलिए ये इजहार करता हूँ,
ए खुदा, मै तुझसे मोहब्बत का इकरार करता हूँ...
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शब्दों का अर्थ- चमन-ए-दहर: दुनिया, गुफ्तार; बातचीत करना, तगाफुल; उपेकछा करना
शब: रात, सहर:गुजरना, तबस्सुम; मुस्कुराहाट, फिरदौस: स्वर्ग, तलत-ए-मेहर:दया
शब-ए-तारीक: रात, हिज्र; जुदाई...........

Thursday, February 24, 2011

तेरे दिल मैं हूँ मैं इक आरज़ी की तरह
आँखों मैं छुपा ले पलकों की हिफाजत दे दे !
तेरे दिल को बना लू मैं सराय अपनी -२
वक़्त-बे-वक़्त आम्दोरफत की इजाजत दे दे !
मेरी गलतियों को मुआफ करके मुस्कुराना बस -२
आँखों से न बहे आंसुओ को ये हिदायत दे दे !
तू जो चाहता है मैं वो तुझको ला क दूंगा -२
बस घडी भर की मुझको मोहलत दे दे !
हर रास्ते पे चलूँगा मैं साथ साथ तेरे -२
करके वादा मेरी बनजा इतनी सी बस इनायत दे दे !
मैं नहीं मांगता तुझसे बस और जयादा - २
मेरी बेवफ़ाईओ की मुझको अदावत दे दे !
तुझ से क्या माँगू मैं अपने दिल की ज़ानिब -२
कर दे सरोबार " कौशिक" को इतनी मोहब्बत दे दे !

Wednesday, February 23, 2011

मेरा अस्तित्व

मै भटकता रहा अपने अस्तित्व के तलाश में,
अलग अलग रूपों को- चोलों को धारण किया...

कभी तरु बना
तो लोगों ने काट दिया,
कभी बना पुष्प
पर लोगो ने तोड़ लिया,
पत्ता बना तो लोगो ने मसल दिया,
दीपक बना तो बुझा दिया गया....

अंततः मै पत्थर बना
और आश्चर्य!!!!
लोग मुझे पूजने लगे...........

Tuesday, February 22, 2011

मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

हँसी आती है अपनी अदाकारी पे खुद हमको
बने हैं खाकशार और वो आसमां छोड़ आए हैं

जो एक पतली सड़क मेरे आसियें से जाती थी
वहीं ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं

वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है
कि हम उजलत में जमाना का किनारा छोड़ आए हैं

उतार आए मुरव्वत और रवादारी का हर चोला
वो अपना हर किला छोड़ आए हैं

ख़याल आता है अक्सर धूप में बाहर निकलते ही
हम अपने गाँव में पीपल का साया छोड़ आए हैं

वो सरज़मीं वो खज़ाना दिलों का
ये सब कुछ था पास अपने, ये सारा जहाँ आए हैं

दुआ के फूल जहां तकसीम करते थे
गली के मोड़ पे हम वो शिवाला छोड़ आए हैं

बुरे लगते हैं शायद इसलिए ये सुरमई बादल
किसी कि ज़ुल्फ़ को शानों पे बिखरा छोड़ आए हैं

अब अपनी जल्दबाजी पर बहुत अफ़सोस होता है
कि एक खोली की खातिर राजवाड़ा छोड़ आए हैं

Monday, February 21, 2011

‘कौशिक’ की धुन

कभी हमसे दिल लगाकर तो देखो,
अपनी रंजिशों को भुलाकर तो देखो,
आसमान उतर आएगा तुम्हारे आगोश में,
जरा हरी रेशमी सांस की सरजमीं में ,
मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ।।

मसीहे मिलेंगे तुम्हें दोस्ती के ,
तराने मिलेंगे जवां ज़िन्दगी के,
चाँद भी उतर आएगा तुम्हारे पहलू में,
रकीबों को घर में बुलाकर तो देखो,
ख़्वाबों की तितली उड़ाकर तो देखो ।।

हमीं हैं , हमीं हैं , हमीं हम हमेशा ,
जरा किताबों से गर्दे हटाकर तो देखो,
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ज़रा गुदगुदाकर तो देखो ।।

चलो बनायें नया लय सजाएँ एक नया सुर ,
कि ‘कौशिक’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो ।।

Saturday, February 19, 2011

राष्ट्र निर्माण

आज हर तरफ पुकार है,
छाया अंधकार है,
अस्मतें हैं लुट रहीं,
फिर भी हम चुप रहे........

भ्रस्टाचार बढ़ रहा,
गरीब अब मर रहे,
अमीर और बढ़ रहे,
फिर भी हम चुप रहे........

घर हमारा बँट रहा,
दीवारें है गिर रहीं,
रोटियां अब छीन रहीं,
फिर भी हम चुप रहे........

कोंख अब उजड़ रहीं,
मांग सूनी हो रहीं,
घर-बेघर हो रहे,
फिर भी हम चुप रहे........

आखिर कब तक हम चुप रहें
अब तो पुकार लें अपने इस जमीर को,
आह्वाहन है एक क्रांति की,
तोड़ दें हर भ्रान्ति को,
कदम हम मिला रहे
नया राष्ट्र बना रहे.......
नया राष्ट्र बना रहे.......

Friday, February 18, 2011

राष्ट्र की पुकार

आज तोड़ दो बंदिशों को,
छोड़ दो इन रंजीशों को,
यूँ हिम्मत हार जाने से क्या होगा,
काफूर हो नहीं सकती ये मजलिशें,
मोड़ दो इन रास्तो को,
चलो फिर एक सिंहनाद के साथ,
उस गर्जना के साथ,
चीर दो इस जमीं को,
फिर पुकार लो उन हौसलों को,
खो चुके हो तुम जिन्हें,
स्वतः आसमां डूब जाएगी आगोश में,
माँ पुकारती है तुम्हें
एक नयी क्रांति के लिए,
दिल से निकाल दो अब हर खौफ को,
आज फिर निर्माण होगा,
तुमसे एक नए राष्ट्र का,
ये शांति नहीं है श्मसान की,
ये आगाज है एक नए तूफ़ान की,
अब तुम उबाल लो अपने इस रक्त को
माँ पुकार रही अपने हर भक्त को
दिखा दो अब पिपाशुओं को,
चाहते हो अगर उन किलकारिओं को
तो चलो फिर एक अट्टहास के साथ
छोड़ दो जमीन पर एक नया पदचाप,
राष्ट्र निर्माण के लिए,
नए जमीन के लिए,
नए आसमान के लिए............

Thursday, February 17, 2011

मेरी कसम

तुझसे मिलकर ये क्या गजब कर चले,
दिल में दर्द ये अजब भर चले,
कल तक वीरान थी जो जिंदगी,
आज उसे रौशाने-गुलज़ार हम कर चले.......

खुदाया अब रहेगी या जाएगी मेरी जां,
अब तो ये खौफ भी हम छोड़ चले,
अब यूं आँखे चुराने से क्या होगा,
जब हम अपना ये नूर ही छोड़ चले.........

चुना जिनकी राहों से कांटे,
वे उन राहों को ही छोड़ चले,
मन वे खफा हैं ज़माने से,
अब हमसे भी मुह मोड़ चले....

अब तो ये तुझ पर ही ही है उम्मीदे-चिराग,
तू जलाकर चले या बुझाकर चले.........

Wednesday, February 16, 2011

बेरुखी को छोडि़ए

प्यार है अगर दिल में तो फिर
बेरुखी को छोडि़ए
आदमी हैं हम सभी
इस दुश्मनी को छोडि़ए

गैर का रोशन मकां हो
आज ऐसा काम कर,
जो जला दे आशियां
उस रोशनी को छोडि़ए

हैं मुसाफिर हम सभी
कुछ पल मिलजुल कर रहें
दर्द हो जिससे किसी को
उस खुशी को छोडि़ए

प्यार बांटो जिंदगी भर
गम को रखो दूर-दूर
फिक्र आ जाए कभी तो
जिंदगी को छोडि़ए

गुल मोहब्बत के जहां पर
खिलते हों अकसर
ना खिलें गुल जो वहां तो
उस जमीं को छोडि़ए

जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए

सोंच बदलो

जरा से झोंके को तूफान कहते हो

टूटता छप्पर है आसमान कहते हो



उठो पहचानो मृग मरीचिका को

मुट्ठी भर रेत को रेगिस्तान कहते हो



अब तो बदलनी पड़ेंगी परिभाषाएं

सोचो तुम किनको इंसान कहते हो



नैनों का जल अभी सूखा नहीं है

पहचानो उन्हें जिन्हें महान कहते हो



बदलो अपनी सोंच,

जानते हो किनको भगवान कहते हो



जमाने को मालूम है बदमाशियाँ

कैसे अपने को नादान कहते हो



कभी झाँका है अपने भीतर "कौशिक"

औरों को क्यों शैतान कहते हो

Monday, February 14, 2011

वैलेंटाइन डे पर

मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना |
कोई चराग बुझ जाये , वो न हवा करना ||


मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …


तुमसे मिलने से पहले , था मैं अजनबी की तरह |
अब जी रहा हूँ जिंदगी को , जिंदगी की तरह ||


दम निकल के भी न निकले वो दवा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना ….


तेरे ख़याल का मुझको , खबर हमेशा रहे |
तू हर किसी के शक्ल में है , मुझे तो ऐसा लगे ||


जला दिए हो शमां दिल में, तो न बुझा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ ,इतनी बस दुआ करना …


तेरे रहमत से आई है, बहार गुलशन में |
तेरे जाज़िब-ए-बदन, का हुक्म, है मेरे मन में ||


भुला के जी न सकूँ तुझको, ये बद्दुआ करना ,
मैं प्यार करता रहूँ, इतनी बस दुआ करना ...


मिली है ठोकरें हर दर से, क्या सुनाऊं तुझे |
अजीज लोग ही पत्थर, गिरा के मारे मुझे ||


खाएं है जख्म बहुत , तू भी न दगा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …


यूँ तो हर लोग इश्क में , फ़कीर होते हैं |
मिली है इश्क-ए-जफ़र, जिसके तक़दीर होते हैं ||


मेरे नशीब को , कुछ ऐसे ही सजा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …


तेरे तासीर की नजाकत ने असर कुछ ऐसा किया |
बहार भर गई चमन में , तेरे रहमत का शुक्रिया ||


आब-ए-चश्म आश्ना को , न ख़ुदा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना ...


मिली शोहरत है मोहब्बत की, जिस तरह से तुझे |
तू भी बदले मुहब्बत में , निशार करना ||


“कौशिक” बिछड़ जाए कही, तो हमें न दिल से जुदा करना,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …

नादान – गजल

नादां है नासमझ है परेशां है बेवजह
तन्हा किसी खयाल मे जीता रहा है वह


पाया है यूं जवाब सवाले हयात का
गुमसुम है, किसी बात पर करता नही जिरह


प्यासा है पर शराब का रखता नही गरज
अर्से से आपसार को पीता रहा है वह


काफ़िर है मगर इश्क़ से रखता है वास्ता
जीता नही सुकून से इन्सां किसी तरह


पहलू मे जहां खुद से भी रहता है गुमसुदा
वर्षों उसी नकाब को सीता रहा है वह


लड़ता है जमाने से क्यूं डरता नही बसर
घायल है मगर बेसबब करता नही सुलह


कहते हैं लोग बाग ये किस्सा यकीन से
कांटा था कभी बाग मे पायी नही जगह


हैरां है आफ़ताब भी शब है कि शाम है
जागा है सारी रात या आयी नही सुबह

तेरी बेवफाई

कब तक दगा करेगी तू किस्मत,
कभी तो वफ़ा करेगी.
खीच लाऊंगा तुझे मंजिल तक,
चाँद तारों से सजा के,
आसमां पर बिठाऊँगा.....

माना तुझे गुरुर है अपने पर,
पर मेरी भी कैफियत कम नहीं है,
आजमाना है जितना तू आजमा ले,
इक दिन तुझसे ही सल्तनत सजाऊंगा,

खफा नहीं हूँ तुझसे,
शिकवा नहीं कर रहा मै,
पर तू है बेवफा तो क्या,
एक दिन तुझसे वफ़ा मै ही निभाऊँगा

अभी ख़ाक में चल रहा हूँ मै,
माना तेरे हौसले भी हैं बुलंद
पर शिकस्त मेरी पहचान नहीं है,
मै एक दिन ज़ुल्मत को चीरकर,
सूरज निकाल लाऊंगा,

तू कब तक दगा करेगी
तुझे मै ही सजाऊँगा
मै ही वफ़ा निभाऊँगा

कौशिक

Sunday, February 13, 2011

वो बीता पल


वो मेरी कश्ती, वो बारिश का पल,
वो मेरा आँगन और आँगन की बाती,
माँ की वो ममता, वो किस्से कहानी,
अब तो छूटा मेरा बचपन वो उसकी निशानी............

वो आँगन की महफ़िल,
वो मेरा मचलना,
वो खिलखिलाना आटें की चिड़ियाँ को पाकर,
वो फूलों की कलियाँ, वो डेहरी पर बादल,
कैसे भुला दूं मै वो बचपन, वो उसकी निशानी.....................

वो माँ का बुलाना और मेरा सताना,
वो दादी का चश्मा लेकर छुपना छुपाना,
कैसे पुकारूँ मै उस पल को,
अब तो लगता ये सूना जमाना.....................

वो मस्तियां वो शेखियां अब मुझे कोई लौटा दे,
उन बचपन के गलियों का आज फ़िर से पता दे|
इस जवानी के मेले में तन्हा सा हो गया हू मैं,
यादों के धागों में सपनों के मोती पिरो कर
कोई तो मेरे उस बचपन का पता दे॥

Saturday, February 12, 2011

WEBNODE :: Prashantkausik(मेरी दृष्टी मेरी सोच )

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Thursday, February 10, 2011

मैं

मैं जिंदगी का साजो सामान बेचता हूँ,
हार चुके हैं जो रण में उन्हें रण विजय का अरमान बेचता हूँ,
पहचानों मुझे वक़्त के इस सफ़र में,
मैं वही हूँ जो पंछिओं को उड़ान बेचता हूँ,
एक खुला असमान बेचता हूँ...............

किसकी तलाश है तुम्हे मएखानें में
ढूंढते क्या हो हर पैमाने में,
यूं टूट जाने से क्या होगा, गम छिपाने से क्या होगा,
चलो मेरे साथ ,
मैं हर दिन चिरागे शाम बेचता हूँ..................

बैठे क्यों हो इन खामोशिओं में,
पहचानता हूँ मै तुम्हारे अधर को
देखे हैं मैंने भी वो ख्वाब,
टूटे हैं जो तुम्हारे दिलों में
पर यूं रूठ जाने से क्या होगा,
तुम सुनो मेरी इस आवाज़ को
आकर मिलो तो मुझसे,
चलो मैं तुम्हे इक नया मुकाम बेचता हूँ.
खामोशिओं की मौत भी गंवारा नहीं मुझे
मैं तो हेर दिन इक तूफ़ान बेचता हूँ
जिंदगी का साजो सामान बेचता हूँ.



Wednesday, February 9, 2011

कौन हूँ मैं???



कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
.....
मयकदे में जाते ही फिर इक कहानी हो गयी,
कातिलाना मदहोश मेरी ये जवानी हो गयी,
अब ढूंढें तो दूंढ़े किसे इस शहर में,
सुना है मेरी यादों में अब तो वो दीवानी हो गयी,

आज कहता हूँ आपसे ईमान से,
जिंदगी तो मुझसे बेमानी हो गयी,
खुशियाँ भी मिलती है अब तो गम के चादर ओढकर,
मौत तो मासूम है ये जिंदगी ही सयानी हो गयी...

मिला जब मै आईने से,
मेरा अक्श भी मुझको देखकर रोता है,
क्या कहूँ उससे अब इस तूफान के बाद,
जब मेरी ये रूह ही बे रवानी हो गयी.

प्रशांत कौशिक

Tuesday, February 8, 2011

बचपन


इस दागदार दुनिया में , गुनाह लगता हैं हैं बड़ा हो जाना....
बस बचपन दिखता बेदाग यहाँ....,
गुजारिश मेरे मौला मुझे सच्चा जी लेने दे ..
इस दुनिया में मुझे बच्चा फिर से हो लेने दे ....

कुछ कह ना सकूँ , चुप रह ना सकूँ,
जीवन की इन राहों में
अब तो मैं जी ना सकूँ , मर न सकूँ,
मेरे मौला अब तो इन राहों में मुझे कच्चा रह लेने दे,
मेरे दिल कि कुछ बातें दिल की ज़ुबानी कह लेने दे
इस दुनिया में मुझे बच्चा फिर से हो लेने दे ....

जीवन का वो पल भी अजीब होता था.
न हँसने की वजह ही होती थी न रोने का बहाना होता था
अब तो मेरे दिल का हर कोना जैसे सुना सुना रहता है,
ना तो अब ये हँसता है ना ही अब ये रोता है,
गुजारिश मेरे मौला फिर से कुछ पल तो हँसने और रोने दे,
कुछ पल फिर से जी लेने दे,
इस दुनिया में मुझे बच्चा फिर से हो लेने दे ....

Friday, February 4, 2011

मन का सागर


अशांत सागर है ये मन मेरा पत्थर ना फेकों ए हमनशीं
दर्द की लहरें हैं, ना खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं

कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो .

ठंडी आहों का भी असर तुम पर अब होता नहीं
मनुहार कर के भी तो ये दिल पिघलता नहीं .

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरा 'मैं' तुम्हारे 'मैं ' से मिलते नहीं.

लो बुझा लेता हूँ अरमानों की इस कसकती लौ को
दफ़ना देता हूँ तुझमें ही इन दगाबाज़ चाहतों को.

प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.

इस सागर में तुम पत्थर न फेंको ए हमनशीं
पत्थर न फेंको ए हमनशीं...........

Wednesday, February 2, 2011

ये मेरा आगाज़ था, अंदाज़ तो बाकी है,
अभी तो सिर्फ पहाड़ों को लांघा है, अभी तो खुला असमान बाकी है,

कह दो उनसे जो खिलखिलाते हैं,
हार गया इस रण में तो क्या,
ढल गया मेरा सूरज तो क्या
अभी तो मेरा इम्तहान बाकी है

मुझे डर नहीं इस अँधेरे का,
खौफ नहीं उस तूफ़ान का भी,
शाम ढल गया है तो क्या,
अभी तो मेरी ख्वाहिशों की उड़ान बाकी है.

कहते है लोग तो कहने दो,
मैं वो धुआं नहीं जो उड़ जाऊँगा
मैं तो मील का पत्थर हूँ जो कभी हिला ही नहीं,
बता दो उन्हें अभी तो मेरा सूरज ढला है
अभी तो मेरा चाँद बाकी है.

एक इंतजार


मै आऊंगा चंदा की झिलमिल चांदनी बनकर,
बारिस की फुहार बनकर,
सुनोगी तुम मुझे कोयल की कूक में,
दिखुंगा मै तुम्हे शाम की चिराग में,

लौटूंगा जब मै तुम्हारे ख्वाबों में,
एक नई रवानी बनकर,
बसंती बयार बनकर,
महसूस करोगी तुम मुझे पवन के हर झोंके में,

सूरज की पहली किरण में,
पंछिओं के सुर के साथ,
छूवूँगा तुम्हें जब मै चुपके से,
तब पहचान तो लोगी स्पर्श मेरा.


प्रशांत कौशिक

Tuesday, February 1, 2011

ये रोशनी

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सोचना ये है की रौशनी आएगी कैसे,
जो अंधेरो में है उन्हें रास्ता दिखाएगी कैसे,
हम यूहीं न मर जाये औरो की तरह,
लोगो को हमारी याद आएगी कैसे.

समां चिनगारियो से न रोशन होगी,
रास्ते तो कट ही जायेंगे,
पर मंजर तूफ़ान का आने से पहले,
हम अपना आशियाँ लुटाये भी तो कैसे,

लोग पूछते हैं इस जख्म के बारे में,
कुछ तो बताते है इस की दवा भी,
खुद ही लुटाया था दामन अपना,
अब उन्हें बताएं भी तो कैसे.

प्रशांत कौसिक

Meri gali se wo jab guzarti hogi,
Jaroor kuch der tharti hogi,
Mujhe bhoolna itna aasan to naho hoga,
Dil me kuch kasak hoti to hogi.

Saath jo dekhe the sapne,
Wo aanko me ek baar ubharta to hoga,
Jab koi baho me leker choomta hoga,
Mera pyar siharta to hoga,

Aaj bhi uski julfo me meri khoosboo samayi hogi,
Jab bhi aayne ke samane wo sawarti hogi,
Poorwaiya ka ek jonkha use choota to hoga.

Mana ki wo hamse khafa hai,
Hamse gooft goo na kerne ki kasam khayi hai,
Per hame yakin to jaroor hai,
Hamare merne ke baad
Do aansoo kushi ke wo girati to hogi.

MBA

एम.बी.ए वो है जो पक गया है,
फिनांस की पढ़ाई मे, मार्केटिंग की लड़ाई मे,
अधीनता की गहराई मे
सहयोग की बुनाई मे



एम.बी.ए वो है जो फस गया है
कॉर्परट पोर्ट्फोलीओ रणनीति के काल मे
प्लेस्मन्ट कम्पनी की चाल
परीक्षा और निर्दिष्टीकरण की मार मे



एम.बी.ए वो है जो
लंच मे करता है ब्रेकफास्ट,
दिन को आराम, रात को करता है काम



एम.बी.ए वो है जो पागल है,
रम और विस्की के प्यार मे,
सिगरेट पीने के जाल मे,
गाने सुनने की तकरार मे.



एम.बी.ए वही है जो,
सुरुवात मे करता पढ़ाई,
बाद मे करता घुमाई,
कक्षा मे मिलता आन-लाइन,
शाम मे मिलता आफ-लाइन



एम.बी.ए करने के जंजाल मे जो फसा,
सुख चैन से लुटा,
परन्तु एम.बी.ए जिसने किया,
पैसे ने उसको छुआ.
 

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