Wednesday, February 16, 2011

बेरुखी को छोडि़ए

प्यार है अगर दिल में तो फिर
बेरुखी को छोडि़ए
आदमी हैं हम सभी
इस दुश्मनी को छोडि़ए

गैर का रोशन मकां हो
आज ऐसा काम कर,
जो जला दे आशियां
उस रोशनी को छोडि़ए

हैं मुसाफिर हम सभी
कुछ पल मिलजुल कर रहें
दर्द हो जिससे किसी को
उस खुशी को छोडि़ए

प्यार बांटो जिंदगी भर
गम को रखो दूर-दूर
फिक्र आ जाए कभी तो
जिंदगी को छोडि़ए

गुल मोहब्बत के जहां पर
खिलते हों अकसर
ना खिलें गुल जो वहां तो
उस जमीं को छोडि़ए

जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए

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