कब तक दगा करेगी तू किस्मत,
कभी तो वफ़ा करेगी.
खीच लाऊंगा तुझे मंजिल तक,
चाँद तारों से सजा के,
आसमां पर बिठाऊँगा.....
माना तुझे गुरुर है अपने पर,
पर मेरी भी कैफियत कम नहीं है,
आजमाना है जितना तू आजमा ले,
इक दिन तुझसे ही सल्तनत सजाऊंगा,
खफा नहीं हूँ तुझसे,
शिकवा नहीं कर रहा मै,
पर तू है बेवफा तो क्या,
एक दिन तुझसे वफ़ा मै ही निभाऊँगा
अभी ख़ाक में चल रहा हूँ मै,
माना तेरे हौसले भी हैं बुलंद
पर शिकस्त मेरी पहचान नहीं है,
मै एक दिन ज़ुल्मत को चीरकर,
सूरज निकाल लाऊंगा,
तू कब तक दगा करेगी
तुझे मै ही सजाऊँगा
मै ही वफ़ा निभाऊँगा
कौशिक
Monday, February 14, 2011
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