
मै आऊंगा चंदा की झिलमिल चांदनी बनकर,
बारिस की फुहार बनकर,
सुनोगी तुम मुझे कोयल की कूक में,
दिखुंगा मै तुम्हे शाम की चिराग में,
लौटूंगा जब मै तुम्हारे ख्वाबों में,
एक नई रवानी बनकर,
बसंती बयार बनकर,
महसूस करोगी तुम मुझे पवन के हर झोंके में,
सूरज की पहली किरण में,
पंछिओं के सुर के साथ,
छूवूँगा तुम्हें जब मै चुपके से,
तब पहचान तो लोगी स्पर्श मेरा.
प्रशांत कौशिक
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