Wednesday, February 9, 2011

मयकदे में जाते ही फिर इक कहानी हो गयी,
कातिलाना मदहोश मेरी ये जवानी हो गयी,
अब ढूंढें तो दूंढ़े किसे इस शहर में,
सुना है मेरी यादों में अब तो वो दीवानी हो गयी,

आज कहता हूँ आपसे ईमान से,
जिंदगी तो मुझसे बेमानी हो गयी,
खुशियाँ भी मिलती है अब तो गम के चादर ओढकर,
मौत तो मासूम है ये जिंदगी ही सयानी हो गयी...

मिला जब मै आईने से,
मेरा अक्श भी मुझको देखकर रोता है,
क्या कहूँ उससे अब इस तूफान के बाद,
जब मेरी ये रूह ही बे रवानी हो गयी.

प्रशांत कौशिक

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