Thursday, February 10, 2011

मैं

मैं जिंदगी का साजो सामान बेचता हूँ,
हार चुके हैं जो रण में उन्हें रण विजय का अरमान बेचता हूँ,
पहचानों मुझे वक़्त के इस सफ़र में,
मैं वही हूँ जो पंछिओं को उड़ान बेचता हूँ,
एक खुला असमान बेचता हूँ...............

किसकी तलाश है तुम्हे मएखानें में
ढूंढते क्या हो हर पैमाने में,
यूं टूट जाने से क्या होगा, गम छिपाने से क्या होगा,
चलो मेरे साथ ,
मैं हर दिन चिरागे शाम बेचता हूँ..................

बैठे क्यों हो इन खामोशिओं में,
पहचानता हूँ मै तुम्हारे अधर को
देखे हैं मैंने भी वो ख्वाब,
टूटे हैं जो तुम्हारे दिलों में
पर यूं रूठ जाने से क्या होगा,
तुम सुनो मेरी इस आवाज़ को
आकर मिलो तो मुझसे,
चलो मैं तुम्हे इक नया मुकाम बेचता हूँ.
खामोशिओं की मौत भी गंवारा नहीं मुझे
मैं तो हेर दिन इक तूफ़ान बेचता हूँ
जिंदगी का साजो सामान बेचता हूँ.



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