आज तोड़ दो बंदिशों को,
छोड़ दो इन रंजीशों को,
यूँ हिम्मत हार जाने से क्या होगा,
काफूर हो नहीं सकती ये मजलिशें,
मोड़ दो इन रास्तो को,
चलो फिर एक सिंहनाद के साथ,
उस गर्जना के साथ,
चीर दो इस जमीं को,
फिर पुकार लो उन हौसलों को,
खो चुके हो तुम जिन्हें,
स्वतः आसमां डूब जाएगी आगोश में,
माँ पुकारती है तुम्हें
एक नयी क्रांति के लिए,
दिल से निकाल दो अब हर खौफ को,
आज फिर निर्माण होगा,
तुमसे एक नए राष्ट्र का,
ये शांति नहीं है श्मसान की,
ये आगाज है एक नए तूफ़ान की,
अब तुम उबाल लो अपने इस रक्त को
माँ पुकार रही अपने हर भक्त को
दिखा दो अब पिपाशुओं को,
चाहते हो अगर उन किलकारिओं को
तो चलो फिर एक अट्टहास के साथ
छोड़ दो जमीन पर एक नया पदचाप,
राष्ट्र निर्माण के लिए,
नए जमीन के लिए,
नए आसमान के लिए............
Friday, February 18, 2011
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