Wednesday, February 2, 2011

ये मेरा आगाज़ था, अंदाज़ तो बाकी है,
अभी तो सिर्फ पहाड़ों को लांघा है, अभी तो खुला असमान बाकी है,

कह दो उनसे जो खिलखिलाते हैं,
हार गया इस रण में तो क्या,
ढल गया मेरा सूरज तो क्या
अभी तो मेरा इम्तहान बाकी है

मुझे डर नहीं इस अँधेरे का,
खौफ नहीं उस तूफ़ान का भी,
शाम ढल गया है तो क्या,
अभी तो मेरी ख्वाहिशों की उड़ान बाकी है.

कहते है लोग तो कहने दो,
मैं वो धुआं नहीं जो उड़ जाऊँगा
मैं तो मील का पत्थर हूँ जो कभी हिला ही नहीं,
बता दो उन्हें अभी तो मेरा सूरज ढला है
अभी तो मेरा चाँद बाकी है.

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