सोचना ये है की रौशनी आएगी कैसे,
जो अंधेरो में है उन्हें रास्ता दिखाएगी कैसे,
हम यूहीं न मर जाये औरो की तरह,
लोगो को हमारी याद आएगी कैसे.
समां चिनगारियो से न रोशन होगी,
रास्ते तो कट ही जायेंगे,
पर मंजर तूफ़ान का आने से पहले,
हम अपना आशियाँ लुटाये भी तो कैसे,
लोग पूछते हैं इस जख्म के बारे में,
कुछ तो बताते है इस की दवा भी,
खुद ही लुटाया था दामन अपना,
अब उन्हें बताएं भी तो कैसे.
प्रशांत कौसिक
0 comments:
Post a Comment