Monday, February 21, 2011

‘कौशिक’ की धुन

कभी हमसे दिल लगाकर तो देखो,
अपनी रंजिशों को भुलाकर तो देखो,
आसमान उतर आएगा तुम्हारे आगोश में,
जरा हरी रेशमी सांस की सरजमीं में ,
मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ।।

मसीहे मिलेंगे तुम्हें दोस्ती के ,
तराने मिलेंगे जवां ज़िन्दगी के,
चाँद भी उतर आएगा तुम्हारे पहलू में,
रकीबों को घर में बुलाकर तो देखो,
ख़्वाबों की तितली उड़ाकर तो देखो ।।

हमीं हैं , हमीं हैं , हमीं हम हमेशा ,
जरा किताबों से गर्दे हटाकर तो देखो,
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ज़रा गुदगुदाकर तो देखो ।।

चलो बनायें नया लय सजाएँ एक नया सुर ,
कि ‘कौशिक’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो ।।

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