आज हर तरफ पुकार है,
छाया अंधकार है,
अस्मतें हैं लुट रहीं,
फिर भी हम चुप रहे........
भ्रस्टाचार बढ़ रहा,
गरीब अब मर रहे,
अमीर और बढ़ रहे,
फिर भी हम चुप रहे........
घर हमारा बँट रहा,
दीवारें है गिर रहीं,
रोटियां अब छीन रहीं,
फिर भी हम चुप रहे........
कोंख अब उजड़ रहीं,
मांग सूनी हो रहीं,
घर-बेघर हो रहे,
फिर भी हम चुप रहे........
आखिर कब तक हम चुप रहें
अब तो पुकार लें अपने इस जमीर को,
आह्वाहन है एक क्रांति की,
तोड़ दें हर भ्रान्ति को,
कदम हम मिला रहे
नया राष्ट्र बना रहे.......
नया राष्ट्र बना रहे.......
Saturday, February 19, 2011
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