मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना |
कोई चराग बुझ जाये , वो न हवा करना ||
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …
तुमसे मिलने से पहले , था मैं अजनबी की तरह |
अब जी रहा हूँ जिंदगी को , जिंदगी की तरह ||
दम निकल के भी न निकले वो दवा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना ….
तेरे ख़याल का मुझको , खबर हमेशा रहे |
तू हर किसी के शक्ल में है , मुझे तो ऐसा लगे ||
जला दिए हो शमां दिल में, तो न बुझा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ ,इतनी बस दुआ करना …
तेरे रहमत से आई है, बहार गुलशन में |
तेरे जाज़िब-ए-बदन, का हुक्म, है मेरे मन में ||
भुला के जी न सकूँ तुझको, ये बद्दुआ करना ,
मैं प्यार करता रहूँ, इतनी बस दुआ करना ...
मिली है ठोकरें हर दर से, क्या सुनाऊं तुझे |
अजीज लोग ही पत्थर, गिरा के मारे मुझे ||
खाएं है जख्म बहुत , तू भी न दगा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …
यूँ तो हर लोग इश्क में , फ़कीर होते हैं |
मिली है इश्क-ए-जफ़र, जिसके तक़दीर होते हैं ||
मेरे नशीब को , कुछ ऐसे ही सजा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …
तेरे तासीर की नजाकत ने असर कुछ ऐसा किया |
बहार भर गई चमन में , तेरे रहमत का शुक्रिया ||
आब-ए-चश्म आश्ना को , न ख़ुदा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना ...
मिली शोहरत है मोहब्बत की, जिस तरह से तुझे |
तू भी बदले मुहब्बत में , निशार करना ||
“कौशिक” बिछड़ जाए कही, तो हमें न दिल से जुदा करना,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …
Monday, February 14, 2011
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