आज कुछ कर दिखाने की जिद है,
सर्द हवाओं का रुख मोड़ लाने की जिद है....................
दीपक जलते हर आंगन में हैं,
फिर भी लोग तमस में क्यों हैं,
कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही,
आज सब कुछ बाहर लाने की जिद है............................
कल तक देखा सब कुछ,
औरों की भी सुन लिया बहुत कुछ,
देख लिया हमने वैभव भाषा का भी
अब तो फिर से तुतलाने की जिद है...........................
भूल चूका हूँ उन परी कथाओं को
जिन्हें दूंढा हर दिशाओं को,
खोया रहता इक ख्वाब परिंदों का
अब उनको फिर से पास बुलाने की जिद है...............................
सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे ,
हमको तो अच्छे लगते हैं अपने मंसूबे,
लहरें अपना नाम पता सब खो दें,
अब तो बस इक ऐसा तूफ़ान उठाने की जिद है
आज फिर कुछ कर दिखाने की जिद है......................
Friday, July 22, 2011
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