Thursday, November 3, 2011

कहाँ है बिहार? एक प्रश्नचिंह............

चमचमाता बिहार. जगमगाता बिहार. दमकता और हीरों जड़ा बिहार. मुख्यमंत्री और सत्ता पार्टी का सपना की अपना बिहार चमचमाता, चमकता और जगमगाता हो. जी हाँ सफलता और खुशियाँ आयीं तो बहुत , बहुत से आयाम भी पाए गए. बहुत सी चुनौतियों को जीता गया पर क्या सचमुच अभी भी ये बिहार वो बिहार बन पाया है जो बनना चाहिए. कहाँ है बिजली कहाँ है? कहाँ है पानी? कहाँ है अब भी भ्रष्टाचार और असंतोष में कमी. कहाँ है आम जनता को आज भी सुकून, आराम और मौलिक सुखों को खुशियों की अनुभूति. मुझे ऐतराज नहीं है इस बात से की बिहार ने प्रगति की है. परन्तु सवाल वही है. आखिर घर में रोटी क्यों नहीं है?

बिहार की पढ़ी-लिखी जनता अपने लिए नौकरी और अच्छी लाईफस्टाइल तो निश्चित कर रही है पर बहार जाकर? क्या यहाँ की पिछडी जनता के दुःख-दर्द या सुविधाओं की कमी का एहसास है? आप पढ-लिख कर बाहर जा रहे हैं देश भर में नौकरी कर रहे हैं विदेशों का भ्रमण कर रहे हैं. विदेशों में नौकरियां पा रहे हैं और उनके लिए उनके देश या उनके परिवेश को अपना कर चार चाँद लगा रहे हैं.   पर क्या आप उनके बारे में सोंच रहे हैं वो आपके अपने रिश्तेदार भी हैं भाई-बहन भी हैं और अगर खून का नाता नहीं है तो तो कम से कम एक जगह के होने का एहसास तो है. आप कर रहे हैं उनके लिए कुछ? आप लड रहे हैं उनके लिए?   बिहार आगे बढ़ रहा है खुशी की बात है. बिहार के लोग आगे बढ़ रहे हैं, खुशी की बात है? बिहारी आगे बढ़ रहे हैं, ये भी खुशी की बात है. देश के कितने राज्य अपने राज्य का दिवस मानते हैं? हम तो वाकई उनसे आगे बढ़ रहे हैं. और आगे ही नहीं बढ़ रहे ये एहसास भी दिला रहे हैं. 
 पर ये सब तो दिखावा लगता है न ऊपरी दिखावा. क्यूंकि अंदर से तो आज भी बिहार, बिहारवासी, बिहारी आज भी पीछडे ही हैं. कुछ वर्गों को छोड़ क्या सभी विकास की ओर अग्रसित हैं? वक्त और माहौल शायद मैंने गलत चुना हो शायद आपको बताने के लिए पर क्या वाकई आपको लगता है की ऐसे वक्त में मुलभुत बातों को इनकार कर देना चाहिए. और अगर आप मानते हैं की इनकार कर देना चाहिए तो बताईए की आपको बिजली कितने घंटे मिलती है? आपको पानी मिलता है मुनिसिपलटी का? क्या आपको गन्दगी और सफाई से निजात मिली है? क्या आपको साफ़ सुन्दर और सुदृढ़ सड़कें मिली हैं. क्या आपको भ्रस्टाचार कहीं नहीं दिखता? क्या आपको ट्राफिक और प्रशासन से शिकायत नहीं है?

जगमगा दो ये शहर, गाँव-गांव, पहर-पहर जगमगा दो ये पूरी धरती ये नील गगन जगमगा दो. पर सिने की धधकती आरजुओं को मत कुचलो, की इनके भी फुल खिला दो. ज़रूरत बस बिजली–पानी और थोड़े से सुख की है. कुछ सपनों को पूरा करने की है.

आईये हम भी मनाएं खुशी . पर थोडा सा दिल में मलाल है की आज भी वो परिपूर्ण बिहार के लिए नहीं पर सब एक तरफ चल दिये हैं तो हम भी उनके पीछे  हैं. नहीं है इतनी खुशी.

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