Friday, November 11, 2011

सोनिया जी की सच्ची कहानी

जब इंटरनेट और ब्लॉग की दुनिया में आया तो सोनिया गाँधी के बारे में काफ़ी कुछ पढने को मिला । पहले तो मैंने भी इस पर विश्वास नहीं किया और इसे मात्र बकवास सोच कर खारिज कर दिया, लेकिन एक-दो नहीं कई साईटों पर कई लेखकों ने सोनिया के बारे में काफ़ी कुछ लिखा है जो कि अभी तक प्रिंट मीडिया में नहीं आया है (और भारत में इंटरनेट कितने और किस प्रकार के लोग उपयोग करते हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है) । बहरहाल, कम से कम मैं तो अनुवाद को रचनात्मक कार्य मानता हूँ, और देश की एक प्रमुख हस्ती के बारे में लिखे हुए का हिन्दी पाठकों के लिये अनुवाद पेश करना एक कर्तव्य मानता हूँ (कम से कम मैं इतना तो ईमानदार हूँ ही, कि जहाँ से अनुवाद करूँ उसका उल्लेख, नाम उपलब्ध हो तो नाम और लिंक उपलब्ध हो तो लिंक देता हूँ) ।
अंग्रेजी में इसके मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को "द न्यू इंडियन एक्सप्रेस" में - अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ।
"अब भूमिका बाँधने की आवश्यकता नहीं है और समय भी नहीं है, हमें सीधे मुख्य मुद्दे पर आ जाना चाहिये । भारत की खुफ़िया एजेंसी "रॉ", जिसका गठन सन १९६८ में हुआ, ने विभिन्न देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी, इसराईल की मोस्साद और फ़्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये और एक नेटवर्क खडा़ किया । इन खुफ़िया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान करने में सक्षम थीं । लेकिन "रॉ" ने इटली की खुफ़िया एजेंसियों से इस प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि "रॉ" के वरिष्ठ जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफ़िया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था ।
सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ १९८० में संजय की मौत के बाद । "रॉ" की नियमित "ब्रीफ़िंग" में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे ("ब्रीफ़िंग" कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे सिर्फ़ काँग्रेस महासचिव थे । राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों । रॉ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी अनुमति देने को कह दिया था, फ़िर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफ़िंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे । उन बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन खुफ़िया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ? या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी । राजीव गाँधी ने सोनिया से सन १९६८ में विवाह किया था, और हालांकि रॉ मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे । अन्ततः दस वर्षों से भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफ़िया संस्था से गठजोड़ कर लिया । क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सोनिया गाँधी ने । सीधी सी बात यह है कि वह इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं । एक मासूम गृहिणी, जो राजनैतिक और प्रशासनिक मामलों से अलिप्त हो और उसके इटालियन खुफ़िया एजेन्सियों के गहरे सम्बन्ध हों यह सोचने वाली बात है, वह भी तब जबकि उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी (वह उन्होंने बहुत बाद में ली) । प्रधानमंत्री के घर में रहते हुए, जबकि राजीव खुद सरकार में नहीं थे । हो सकता है कि रॉ इसी कारण से इटली की खुफ़िया एजेंसी से गठजोड़ करने मे कतरा रहा हो, क्योंकि ऐसे किसी भी सहयोग के बाद उन जासूसों की पहुँच सिर्फ़ रॉ तक न रहकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हो सकती थी ।
जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब सुरक्षा अधिकारियों ने इंदिरा गाँधी को बुलेटप्रूफ़ कार में चलने की सलाह दी, इंदिरा गाँधी ने अम्बेसेडर कारों को बुलेटप्रूफ़ बनवाने के लिये कहा, उस वक्त भारत में बुलेटप्रूफ़ कारें नहीं बनती थीं इसलिये एक जर्मन कम्पनी को कारों को बुलेटप्रूफ़ बनाने का ठेका दिया गया । जानना चाहते हैं उस ठेके का बिचौलिया कौन था, वाल्टर विंसी, सोनिया गाँधी की बहन अनुष्का का पति ! रॉ को हमेशा यह शक था कि उसे इसमें कमीशन मिला था, लेकिन कमीशन से भी गंभीर बात यह थी कि इतना महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी कार्य उसके मार्फ़त दिया गया । इटली का प्रभाव सोनिया दिल्ली तक लाने में कामयाब रही थीं, जबकि इंदिरा गाँधी जीवित थीं । दो साल बाद १९८६ में ये वही वाल्टर विंसी महाशय थे जिन्हें एसपीजी को इटालियन सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने का ठेका मिला, और आश्चर्य की बात यह कि इस सौदे के लिये उन्होंने नगद भुगतान की मांग की और वह सरकारी तौर पर किया भी गया । यह नगद भुगतान पहले एक रॉ अधिकारी के हाथों जिनेवा (स्विटजरलैण्ड) पहुँचाया गया लेकिन वाल्टर विंसी ने जिनेवा में पैसा लेने से मना कर दिया और रॉ के अधिकारी से कहा कि वह ये पैसा मिलान (इटली) में चाहता है, विंसी ने उस अधिकारी को कहा कि वह स्विस और इटली के कस्टम से उन्हें आराम से निकलवा देगा और यह "कैश" चेक नहीं किया जायेगा । रॉ के उस अधिकारी ने उसकी बात नहीं मानी और अंततः वह भुगतान इटली में भारतीय दूतावास के जरिये किया गया । इस नगद भुगतान के बारे में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.जी.देशमुख ने अपनी हालिया किताब में उल्लेख किया है, हालांकि वह तथाकथित ट्रेनिंग घोर असफ़ल रही और सारा पैसा लगभग व्यर्थ चला गया । इटली के जो सुरक्षा अधिकारी भारतीय एसपीजी कमांडो को प्रशिक्षण देने आये थे उनका रवैया जवानों के प्रति बेहद रूखा था, एक जवान को तो उस दौरान थप्पड़ भी मारा गया । रॉ अधिकारियों ने यह बात राजीव गाँधी को बताई और कहा कि इस व्यवहार से सुरक्षा बलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और उनकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसे में खतरे में पड़ सकती है, घबराये हुए राजीव ने तत्काल वह ट्रेनिंग रुकवा दी,लेकिन वह ट्रेनिंग का ठेका लेने वाले विंसी को तब तक भुगतान किया जा चुका था ।
राजीव गाँधी की हत्या के बाद तो सोनिया गाँधी पूरी तरह से इटालियन और पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों पर भरोसा करने लगीं, खासकर उस वक्त जब राहुल और प्रियंका यूरोप घूमने जाते थे । सन १९८५ में जब राजीव सपरिवार फ़्रांस गये थे तब रॉ का एक अधिकारी जो फ़्रेंच बोलना जानता था, उनके साथ भेजा गया था, ताकि फ़्रेंच सुरक्षा अधिकारियों से तालमेल बनाया जा सके । लियोन (फ़्रांस) में उस वक्त एसपीजी अधिकारियों में हड़कम्प मच गया जब पता चला कि राहुल और प्रियंका गुम हो गये हैं । भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को विंसी ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है, दोनों बच्चे जोस वाल्डेमारो के साथ हैं जो कि सोनिया की एक और बहन नादिया के पति हैं । विंसी ने उन्हें यह भी कहा कि वे वाल्डेमारो के साथ स्पेन चले जायेंगे जहाँ स्पेनिश अधिकारी उनकी सुरक्षा संभाल लेंगे । भारतीय सुरक्षा अधिकारी यह जानकर अचंभित रह गये कि न केवल स्पेनिश बल्कि इटालियन सुरक्षा अधिकारी उनके स्पेन जाने के कार्यक्रम के बारे में जानते थे । जाहिर है कि एक तो सोनिया गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अहसानों के तले दबना नहीं चाहती थीं, और वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर विश्वास नहीं करती थीं । इसका एक और सबूत इससे भी मिलता है कि एक बार सन १९८६ में जिनेवा स्थित रॉ के अधिकारी को वहाँ के पुलिस कमिश्नर जैक कुन्जी़ ने बताया कि जिनेवा से दो वीआईपी बच्चे इटली सुरक्षित पहुँच चुके हैं, खिसियाये हुए रॉ अधिकारी को तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था । जिनेवा का पुलिस कमिश्नर उस रॉ अधिकारी का मित्र था, लेकिन यह अलग से बताने की जरूरत नहीं थी कि वे वीआईपी बच्चे कौन थे । वे कार से वाल्टर विंसी के साथ जिनेवा आये थे और स्विस पुलिस तथा इटालियन अधिकारी निरन्तर सम्पर्क में थे जबकि रॉ अधिकारी को सिरे से कोई सूचना ही नहीं थी, है ना हास्यास्पद लेकिन चिंताजनक... उस स्विस पुलिस कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि "तुम्हारे प्रधानमंत्री की पत्नी तुम पर विश्वास नहीं करती और उनके बच्चों की सुरक्षा के लिये इटालियन एजेंसी से सहयोग करती है" । बुरी तरह से अपमानित रॉ के अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ । अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों के गुट में तेजी से यह बात फ़ैल गई थी कि सोनिया गाँधी भारतीय अधिकारियों, भारतीय सुरक्षा और भारतीय दूतावासों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती हैं, और यह निश्चित ही भारत की छवि खराब करने वाली बात थी । राजीव की हत्या के बाद तो उनके विदेश प्रवास के बारे में विदेशी सुरक्षा एजेंसियाँ, एसपीजी से अधिक सूचनायें पा जाती थी और भारतीय पुलिस और रॉ उनका मुँह देखते रहते थे । (ओट्टावियो क्वात्रोची के बार-बार मक्खन की तरह हाथ से फ़िसल जाने का कारण समझ में आया ?) उनके निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज सीधे पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के सम्पर्क में रहते थे, रॉ अधिकारियों ने इसकी शिकायत नरसिम्हा राव से की थी, लेकिन जैसी की उनकी आदत (?) थी वे मौन साध कर बैठ गये ।
संक्षेप में तात्पर्य यह कि, जब एक गृहिणी होते हुए भी वे गंभीर सुरक्षा मामलों में अपने परिवार वालों को ठेका दिलवा सकती हैं, राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी के जीवित रहते रॉ को इटालियन जासूसों से सहयोग करने को कह सकती हैं, सत्ता में ना रहते हुए भी भारतीय सुरक्षा अधिकारियों पर अविश्वास दिखा सकती हैं, तो अब जबकि सारी सत्ता और ताकत उनके हाथों मे है, वे क्या-क्या कर सकती हैं, बल्कि क्या नहीं कर सकती । हालांकि "मैं भारत की बहू हूँ" और "मेरे खून की अंतिम बूँद भी भारत के काम आयेगी" आदि वे यदा-कदा बोलती रहती हैं, लेकिन यह असली सोनिया नहीं है । समूचा पश्चिमी जगत, जो कि जरूरी नहीं कि भारत का मित्र ही हो, उनके बारे में सब कुछ जानता है, लेकिन हम भारतीय लोग सोनिया के बारे में कितना जानते हैं ? (भारत भूमि पर जन्म लेने वाला व्यक्ति चाहे कितने ही वर्ष विदेश में रह ले, स्थाई तौर पर बस जाये लेकिन उसका दिल हमेशा भारत के लिये धड़कता है, और इटली में जन्म लेने वाले व्यक्ति का....)

Thursday, November 10, 2011

वो मेरा बचपन

कितना खूबसूरत, मेरा वो अल्हड़ सा बचपन
कंचे की चट-चट में बीता वो दिन
जीत की खुशी कभी तो रहा कभी हार का गम
रंगबिरंगे कंचों में घूमता बचपन।
गिल्ली डंडे का है आज मैदान जमा
किसकी कितनी दूर,है यही शोर मचा
डंडे पे उछली गिल्ली कर रही है नाच
दूर कहीं गिरती,आ जाती कभी हाथ
भागते हैं कदम कितने बच्चों के साथ
गिल्ली डंडे में बीता है बचपन का राग।
कभी बित्ती से खेलते कभी मिट्टी का घर
पानी पे रेंगती वो बित्ती की तरंग
भर जाती थी बचपन में कितनी उमंग।
कुलेड़ों को भिगोकर तराजू हैं बनाए
तौल के लिये खील-खिलौने ले आए
सुबह-सुबह उठकर दिये बीनने की होड़
लगता था बचपन है,बस भाग दौड़
सारे खेलों में ऊपर रहा गिट्टी फोड़
सात-सात गिट्टियाँ क्या खूब हैं जमाई
याद कर उन्हें आँख क्यूं भर आई।
हाँ घर-घर भी खेला सब दोस्तों के साथ
एक ही घर में सब करते थे वास
हाथ के गुट्टों में उछला,वो मासूम बचपन
दिल चाहे फिर लौट आए वो मधुबन
तुझ सा न कोई और दूसरा जीवन
कितना खूबसूरत,अल्हड़ सा बचपन…

Saturday, November 5, 2011

मैं

माना गहरे तक ज़मीं में गड़ा हूँ,
मगर खुश हूँ, कि अपनी जड़ों पर खड़ा हूँ ॥

झुकता हूँ मैं सिर्फ़ मेरे ख़ुदा के आगे,
तू मुश्किलों से पूछ कि मैं कितना कड़ा हूँ ॥

लोग अपने लिए ग़ैरों का नामोनिशां मिटा देते,
मगर अपने लिए हर बार मैं सिर्फ़ ख़ुद से लड़ा हूँ ॥
उतरा लहर-सा कभी समंदर के सीने पर,
कभी कश्ती की मानिंद अपने साहिल से बिछड़ा हूँ ॥

तुझे अब हर पल नयी रंगतों का शहर दिखता हूँ,
क्या मालूम तुझे हर पल में कितनी बार उजड़ा हूँ ॥

हर तूफ़ान ने चाहा मुझे पत्तों-सा उड़ा देना,
पर बरसों से इसी राह पर पत्थर बनकर अड़ा हूँ ॥

अनगिनत ख़्वाहिशों के आशियां मेरे दिल में हैं,
मैं हरदम सुलगती इन बस्तियों से बड़ा हूँ ॥

Thursday, November 3, 2011

कहाँ है बिहार? एक प्रश्नचिंह............

चमचमाता बिहार. जगमगाता बिहार. दमकता और हीरों जड़ा बिहार. मुख्यमंत्री और सत्ता पार्टी का सपना की अपना बिहार चमचमाता, चमकता और जगमगाता हो. जी हाँ सफलता और खुशियाँ आयीं तो बहुत , बहुत से आयाम भी पाए गए. बहुत सी चुनौतियों को जीता गया पर क्या सचमुच अभी भी ये बिहार वो बिहार बन पाया है जो बनना चाहिए. कहाँ है बिजली कहाँ है? कहाँ है पानी? कहाँ है अब भी भ्रष्टाचार और असंतोष में कमी. कहाँ है आम जनता को आज भी सुकून, आराम और मौलिक सुखों को खुशियों की अनुभूति. मुझे ऐतराज नहीं है इस बात से की बिहार ने प्रगति की है. परन्तु सवाल वही है. आखिर घर में रोटी क्यों नहीं है?

बिहार की पढ़ी-लिखी जनता अपने लिए नौकरी और अच्छी लाईफस्टाइल तो निश्चित कर रही है पर बहार जाकर? क्या यहाँ की पिछडी जनता के दुःख-दर्द या सुविधाओं की कमी का एहसास है? आप पढ-लिख कर बाहर जा रहे हैं देश भर में नौकरी कर रहे हैं विदेशों का भ्रमण कर रहे हैं. विदेशों में नौकरियां पा रहे हैं और उनके लिए उनके देश या उनके परिवेश को अपना कर चार चाँद लगा रहे हैं.   पर क्या आप उनके बारे में सोंच रहे हैं वो आपके अपने रिश्तेदार भी हैं भाई-बहन भी हैं और अगर खून का नाता नहीं है तो तो कम से कम एक जगह के होने का एहसास तो है. आप कर रहे हैं उनके लिए कुछ? आप लड रहे हैं उनके लिए?   बिहार आगे बढ़ रहा है खुशी की बात है. बिहार के लोग आगे बढ़ रहे हैं, खुशी की बात है? बिहारी आगे बढ़ रहे हैं, ये भी खुशी की बात है. देश के कितने राज्य अपने राज्य का दिवस मानते हैं? हम तो वाकई उनसे आगे बढ़ रहे हैं. और आगे ही नहीं बढ़ रहे ये एहसास भी दिला रहे हैं. 
 पर ये सब तो दिखावा लगता है न ऊपरी दिखावा. क्यूंकि अंदर से तो आज भी बिहार, बिहारवासी, बिहारी आज भी पीछडे ही हैं. कुछ वर्गों को छोड़ क्या सभी विकास की ओर अग्रसित हैं? वक्त और माहौल शायद मैंने गलत चुना हो शायद आपको बताने के लिए पर क्या वाकई आपको लगता है की ऐसे वक्त में मुलभुत बातों को इनकार कर देना चाहिए. और अगर आप मानते हैं की इनकार कर देना चाहिए तो बताईए की आपको बिजली कितने घंटे मिलती है? आपको पानी मिलता है मुनिसिपलटी का? क्या आपको गन्दगी और सफाई से निजात मिली है? क्या आपको साफ़ सुन्दर और सुदृढ़ सड़कें मिली हैं. क्या आपको भ्रस्टाचार कहीं नहीं दिखता? क्या आपको ट्राफिक और प्रशासन से शिकायत नहीं है?

जगमगा दो ये शहर, गाँव-गांव, पहर-पहर जगमगा दो ये पूरी धरती ये नील गगन जगमगा दो. पर सिने की धधकती आरजुओं को मत कुचलो, की इनके भी फुल खिला दो. ज़रूरत बस बिजली–पानी और थोड़े से सुख की है. कुछ सपनों को पूरा करने की है.

आईये हम भी मनाएं खुशी . पर थोडा सा दिल में मलाल है की आज भी वो परिपूर्ण बिहार के लिए नहीं पर सब एक तरफ चल दिये हैं तो हम भी उनके पीछे  हैं. नहीं है इतनी खुशी.

Tuesday, October 18, 2011

मै हिन्दुस्तानी हूँ

न तू तू हूँ न मै मै हूँ , मै आज तेरी ही कहानी हूँ ,
सच कहता हूँ आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,
मै ज्ञान नहीं, मै ध्यान नहीं, अरमां नहीं, भगवान नहीं,
मत देख तू मुझको प्यारे, मै तेरी ही आँखों का पानी हूँ,
सच कहता हूँ आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,
... जो रूठ चले वो रूठ चले,
उनसे क्या सरोकार हमारा जिनके मंसूबे ऐसे टूट चले
हे खुदा तूने ये भेद क्यों बनाया है
हिन्दू ने क्या पाया जो मुस्लिम ने न पाया है,
सच कहता आज मै तेरी ही कहानी हूँ ,
आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,
अब तक रक्तपात हुआ सिर्फ इस बटवारें से
ऐसा लगता जैसे आसमान बिछड़ गया हो तारे से
न मै शर्मा ,न मै वर्मा, मै शास्वत कर्मा हूँ ,
खान न कहना प्यारे मै खान नहीं खानदानी हूँ
न तू तू हूँ न मै मै हूँ , मै आज तेरी ही कहानी हूँ ,
सच कहता हूँ आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,

Sunday, October 16, 2011

जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........

सागर होती होगी दुनिया, इक पल में मै तर जाऊँगा,
ठान लिया है जो मन में, इक दिन मै कर जाऊँगा,
वादा मेरा इस दुनिया से, इस जग में जीने वालों से,
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा .........
ना समझौता न सुनवाई, ना काफ़िर की तारीखें
कलम उठाकर सस्त्र बनाकर सीधा ही लड़ जाऊँगा
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........
मेरी शिक्षा मेरा धन है, जीवन है जो सब पर अरपन है
खौले खून तो जेठ महीना बहते आंसू सावन है
परछाईं में रहने वालों, मुझको पागल कहने वालों,
कलम बना के अपनी मलहम, पीड़ा सब हर जाऊँगा
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........

Tuesday, September 27, 2011

चाह

मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

चाहता मैं अपने हर साथियों के साथ रहना
चाहता हर होंठ पर मुस्कान धरना।
मैं दुखो से त्रान पाना चाहता हूँ।
मैं हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...। ।

सब सुखी, सानंद हों, यह कामना है
स्नेह की वर्षा सतत, यह भावना है,
मैं तुम्हारे प्यार का वरदान पाना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

तौलते है लोग पैसे से यंहा हर चीज को
वे फलों से आंकते है बीज को।
लाभ-लोभों की घुटन से मुक्त होना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

अर्थ के सब दास दानाब बन रहे है
वाक् छल से मनुजता को छल रहे है।
मैं सहज इंसान होना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ..
. मैं तुम्हारे प्यार का भूखा अकिंचन
चाहता हूँ मीन-सा एक मुक्त जीवन
मैं तुम्हारा हो संकुं, वरदान एकल चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...
 

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