Sunday, March 27, 2011
फिर से
अँधेरा चीर के रौशनी आएगी फिर से,
ये शाख देखना लहलहाएगी फिर से.
खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.
ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.
हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.
सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.
जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कौशिक" की शायरी जगायेगी फिर से.
Thursday, March 24, 2011
मुहब्बत
अगर कुछ कहना हो , दिल्लगी में कह डालिए,
जीना हो शुकून से तो अब मुहब्बत कर डालिए.
वो काफ़िर नहीं जो नाम खुदा का नहीं लेता
काफ़िर तो वो है जो इन्कार मोहब्बत से करता है,
छोड़ के इन बंदिशों को अब ये जाम अधर से लगाइए
इक बार बस अब मुहब्बत कर डालिए
नसीब तुझे जन्नत होगी या नहीं क्या पता ;
जन्नत बनी है उसके लिए जो मुहब्बत खातिर अश्क पीता है !
खोट दिल मैं है तो लाख कोशिशे कर ले ,
तू मुखातिब न हो सकेगा उंनसे जो ये जाम पीता है,
छोड़ कर साड़ी उलझनों को अब इस जहाँ में आईये
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......
साथ इसका मिले तो भले ये दुनिया छूटे ,
सिर्फ सोचता है उसको,फ़िक्र इसकी ना करता है !
न मंदिरों मैं भगवान्,मस्जिदों मैं कहाँ खुदा मिलता है ;
वो तो प्यार करने वालों के मन्दिर-ऐ-दिल मैं रहा करता है !
मानकर इस कौशिक की बात इक बार ये प्याला उठाइए
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......
जीना हो शुकून से तो अब मुहब्बत कर डालिए.
वो काफ़िर नहीं जो नाम खुदा का नहीं लेता
काफ़िर तो वो है जो इन्कार मोहब्बत से करता है,
छोड़ के इन बंदिशों को अब ये जाम अधर से लगाइए
इक बार बस अब मुहब्बत कर डालिए
नसीब तुझे जन्नत होगी या नहीं क्या पता ;
जन्नत बनी है उसके लिए जो मुहब्बत खातिर अश्क पीता है !
खोट दिल मैं है तो लाख कोशिशे कर ले ,
तू मुखातिब न हो सकेगा उंनसे जो ये जाम पीता है,
छोड़ कर साड़ी उलझनों को अब इस जहाँ में आईये
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......
साथ इसका मिले तो भले ये दुनिया छूटे ,
सिर्फ सोचता है उसको,फ़िक्र इसकी ना करता है !
न मंदिरों मैं भगवान्,मस्जिदों मैं कहाँ खुदा मिलता है ;
वो तो प्यार करने वालों के मन्दिर-ऐ-दिल मैं रहा करता है !
मानकर इस कौशिक की बात इक बार ये प्याला उठाइए
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......
हमें तो मुहब्बत के सिबा कुछ आता नहीं
हम बहलाते हैं दुनियाँ को कोई हमें बहलाता नहीं
अश्क तो पागल हैं कुछ सोच के निकल आते हैं
और कुछ ऐसा भी नहीं की कोई याद हमें आता नहीं
हम वफ़ा करते रहे और जख्म दिल पे खाते रहे
कोई लाख चाहे यादें फिर भी भुला पाता नहीं
कौन 'दीपक' कैसा ' सवेरा' सब खो जाएँगे
पैगाम अपनी मौत का कोई खुद को सुना पाता नहीं
कोई शिकवा नहीं अपनों से न गिला तुझ से
हम बुलाते हैं खुदा तुझको पर तू आता नहीं
बंदिशें मेरी नहीं तेरी ही होंगी शायद
वर्ना तू भी रोता साथ मेरे,मुस्कुराता नहीं
हम चले जाएँगे दुनियाँ से मुस्कुराते हुए
कोई मुझसा जशन-ए-ग़म मना पाता नहीं
हम बहलाते हैं दुनियाँ को कोई हमें बहलाता नहीं
अश्क तो पागल हैं कुछ सोच के निकल आते हैं
और कुछ ऐसा भी नहीं की कोई याद हमें आता नहीं
हम वफ़ा करते रहे और जख्म दिल पे खाते रहे
कोई लाख चाहे यादें फिर भी भुला पाता नहीं
कौन 'दीपक' कैसा ' सवेरा' सब खो जाएँगे
पैगाम अपनी मौत का कोई खुद को सुना पाता नहीं
कोई शिकवा नहीं अपनों से न गिला तुझ से
हम बुलाते हैं खुदा तुझको पर तू आता नहीं
बंदिशें मेरी नहीं तेरी ही होंगी शायद
वर्ना तू भी रोता साथ मेरे,मुस्कुराता नहीं
हम चले जाएँगे दुनियाँ से मुस्कुराते हुए
कोई मुझसा जशन-ए-ग़म मना पाता नहीं
Tuesday, March 22, 2011
तेरी मर्ज़ी
कह दिया था सबकुछ आँखों से
फिर भी होंठ कपकपाया था
थामना न थामना थी तेरी मर्ज़ी,
मैंने तो अपना हाथ बढ़ाया था.
बुला रहा थी या कहा था अलविदा
देर तक हाथों को हिलाया था.
करता हूँ इंतज़ार ख्वाबों में
ख्वाबों को तुने दिखाया था
अब भी याद करती क्या मुझको
हिचकी ने कल नींद से जगाया था............
फिर भी होंठ कपकपाया था
थामना न थामना थी तेरी मर्ज़ी,
मैंने तो अपना हाथ बढ़ाया था.
बुला रहा थी या कहा था अलविदा
देर तक हाथों को हिलाया था.
करता हूँ इंतज़ार ख्वाबों में
ख्वाबों को तुने दिखाया था
अब भी याद करती क्या मुझको
हिचकी ने कल नींद से जगाया था............
Thursday, March 10, 2011
एक कहानी
एक कहानी मैं लिखता हूँ , एक कहानी तू भी लिख !
बादल बादल मैं लिखता हूँ ,पानी पानी तू भी लिख|
बीत गई जो अपनी यादें, उन यादों को भी तू लिख!
एक निशानी मैं लिखता हूँ, एक निशानी तू भी लिख|
इस कलम में डाल के स्याही, लिख दे जो मन में आए!
नई कहानी मैं लिखता हूँ ,एक पुरानी तू भी लिख |
जीवन की इस भाग दौड़ में, क्या खोया तुमने हमने?
एक जवानी मैं लिखता हूँ, एक जवानी तू भी लिख |
हर व्यक्ति में छिपा हुआ है,वादी भी प्रतिवादी भी!
सारी सजाए मैं लिखता हूँ, काला पानी तू भी लिख |
बादल बादल मैं लिखता हूँ ,पानी पानी तू भी लिख|
बीत गई जो अपनी यादें, उन यादों को भी तू लिख!
एक निशानी मैं लिखता हूँ, एक निशानी तू भी लिख|
इस कलम में डाल के स्याही, लिख दे जो मन में आए!
नई कहानी मैं लिखता हूँ ,एक पुरानी तू भी लिख |
जीवन की इस भाग दौड़ में, क्या खोया तुमने हमने?
एक जवानी मैं लिखता हूँ, एक जवानी तू भी लिख |
हर व्यक्ति में छिपा हुआ है,वादी भी प्रतिवादी भी!
सारी सजाए मैं लिखता हूँ, काला पानी तू भी लिख |
Tuesday, March 8, 2011
ख्वाइश
मेरी आँखों को कुछ अच्छा न लगे
कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़रें मिलाना,
कि दिन का हर पल हर लम्हा सुहाना लगे
कुछ ऐसे तुम मेरे साथ कुछ वक़्त बिताना,
कि हँसी मेरे लबों से उतरना न चाहे
कुछ ऐसे मेरे लिए तुम मुस्कुराना,
कि हो जाये मुझे खुशियों कि आदत
कुछ ऐसे मेरी जिंदगी से ग़मों को मिटाना,
कि तुम देखती रहो मुझे हरदम
कुछ ऐसे तुम मुझे अपने सामने बिठाना,
कि मैं नाराज़ होना चाहूँ बार-बार
कुछ ऐसे तुम मुझे रूठने पर मनाना,
कि करता रहूँ तुझे प्यार उम्र भर
कुछ ऐसे शमा-ए-मुहब्बत को जलाना,
कि हो मेरे बसेरा कहीं और नामुमकिन,
कुछ ऐसे मुझे अपने दिल में बसाना,
कि बन जाओ मेरे दिल कि धड़कन
कुछ ऐसे मेरे दिल में समाना,
कि नामंज़ूर हो मुझे किसी और का होना
कुछ ऐसे तुम मुझे अपना बनाना,
कि मुझे बारिश कि बूँदे भी अधूरी लगे
कुछ ऐसे तुम मुझ पर प्यार बरसाना,
कि बन जाएं हम मुहब्बत की मिसाल
कुछ ऐसे तुम इस रिश्ते को निभाना,
कि जिंदगी का आखिरी पल भी हसीन लगे
कुछ ऐसे तुम मुझे अपने गले से लगाना,
कि मौत भी हमें जुदा न कर पाए,
कुछ ऐसे मैं तेरा हो जाऊँ, कुछ ऐसे तुम मेरी हो जाना,
Monday, March 7, 2011
फिर इक बार रौशन ये शमां हो जाए,
जो तेरी इंनायत इक बार दुबारा हो जाए,
मै फिर जाग उठूं इस सैया से
जो फिर इक बार क़यामत हो जाये................
To be continued.............
जो तेरी इंनायत इक बार दुबारा हो जाए,
मै फिर जाग उठूं इस सैया से
जो फिर इक बार क़यामत हो जाये................
To be continued.............
Friday, March 4, 2011
सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है,
ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है,
एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं है,
जब से मैंने एक बार कहा था, माँ-मुझे डर लगता है!
ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है,
एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं है,
जब से मैंने एक बार कहा था, माँ-मुझे डर लगता है!
रू बरू
चलो आज जिंदगी से रू बरू हो जाए,
तलाशें अपने अक्श को टूटे हुए आईने में,
तारों में अकेला चाँद जगमगाता है,
मुश्किलों में ही अक्सर इंसान ही डगमगाता है,
चलो इन लक्जिशों को संभाल लें
और फिर शुरु हो जाएँ
चलो जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
हर रोज ही तुम्हारा इम्तिहान है,
ये जंग ही तुम्हारी पहचान है,
कहाँ इख़्तियार होता है लम्हों पर,
उम्मीद है कुछ पल और ठहर जाएँ
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
सोचता हूँ मुझको हुआ क्या है,
इस दर्दे ए दिल की दावा क्या है
इस मंजर का मुझे इल्म ना था,
बीते हुए लम्हों में कोई गम न था,
काश ये शब् यही यही ठहर जाये
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
तलाशें अपने अक्श को टूटे हुए आईने में,
तारों में अकेला चाँद जगमगाता है,
मुश्किलों में ही अक्सर इंसान ही डगमगाता है,
चलो इन लक्जिशों को संभाल लें
और फिर शुरु हो जाएँ
चलो जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
हर रोज ही तुम्हारा इम्तिहान है,
ये जंग ही तुम्हारी पहचान है,
कहाँ इख़्तियार होता है लम्हों पर,
उम्मीद है कुछ पल और ठहर जाएँ
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
सोचता हूँ मुझको हुआ क्या है,
इस दर्दे ए दिल की दावा क्या है
इस मंजर का मुझे इल्म ना था,
बीते हुए लम्हों में कोई गम न था,
काश ये शब् यही यही ठहर जाये
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
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