चलो आज जिंदगी से रू बरू हो जाए,
तलाशें अपने अक्श को टूटे हुए आईने में,
तारों में अकेला चाँद जगमगाता है,
मुश्किलों में ही अक्सर इंसान ही डगमगाता है,
चलो इन लक्जिशों को संभाल लें
और फिर शुरु हो जाएँ
चलो जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
हर रोज ही तुम्हारा इम्तिहान है,
ये जंग ही तुम्हारी पहचान है,
कहाँ इख़्तियार होता है लम्हों पर,
उम्मीद है कुछ पल और ठहर जाएँ
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
सोचता हूँ मुझको हुआ क्या है,
इस दर्दे ए दिल की दावा क्या है
इस मंजर का मुझे इल्म ना था,
बीते हुए लम्हों में कोई गम न था,
काश ये शब् यही यही ठहर जाये
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................
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