Thursday, March 24, 2011

मुहब्बत

अगर कुछ कहना हो , दिल्लगी में कह डालिए,
जीना हो शुकून से तो अब मुहब्बत कर डालिए.
वो काफ़िर नहीं जो नाम खुदा का नहीं लेता
काफ़िर तो वो है जो इन्कार मोहब्बत से करता है,
छोड़ के इन बंदिशों को अब ये जाम अधर से लगाइए
इक बार बस अब मुहब्बत कर डालिए

नसीब तुझे जन्नत होगी या नहीं क्या पता ;
जन्नत बनी है उसके लिए जो मुहब्बत खातिर अश्क पीता है !
खोट दिल मैं है तो लाख कोशिशे कर ले ,
तू मुखातिब न हो सकेगा उंनसे जो ये जाम पीता है,
छोड़ कर साड़ी उलझनों को अब इस जहाँ में आईये
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......

साथ इसका मिले तो भले ये दुनिया छूटे ,
सिर्फ सोचता है उसको,फ़िक्र इसकी ना करता है !
न मंदिरों मैं भगवान्,मस्जिदों मैं कहाँ खुदा मिलता है ;
वो तो प्यार करने वालों के मन्दिर-ऐ-दिल मैं रहा करता है !
मानकर इस कौशिक की बात इक बार ये प्याला उठाइए
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......

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