Friday, November 11, 2011

सोनिया जी की सच्ची कहानी

जब इंटरनेट और ब्लॉग की दुनिया में आया तो सोनिया गाँधी के बारे में काफ़ी कुछ पढने को मिला । पहले तो मैंने भी इस पर विश्वास नहीं किया और इसे मात्र बकवास सोच कर खारिज कर दिया, लेकिन एक-दो नहीं कई साईटों पर कई लेखकों ने सोनिया के बारे में काफ़ी कुछ लिखा है जो कि अभी तक प्रिंट मीडिया में नहीं आया है (और भारत में इंटरनेट कितने और किस प्रकार के लोग उपयोग करते हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है) । बहरहाल, कम से कम मैं तो अनुवाद को रचनात्मक कार्य मानता हूँ, और देश की एक प्रमुख हस्ती के बारे में लिखे हुए का हिन्दी पाठकों के लिये अनुवाद पेश करना एक कर्तव्य मानता हूँ (कम से कम मैं इतना तो ईमानदार हूँ ही, कि जहाँ से अनुवाद करूँ उसका उल्लेख, नाम उपलब्ध हो तो नाम और लिंक उपलब्ध हो तो लिंक देता हूँ) ।
अंग्रेजी में इसके मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को "द न्यू इंडियन एक्सप्रेस" में - अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ।
"अब भूमिका बाँधने की आवश्यकता नहीं है और समय भी नहीं है, हमें सीधे मुख्य मुद्दे पर आ जाना चाहिये । भारत की खुफ़िया एजेंसी "रॉ", जिसका गठन सन १९६८ में हुआ, ने विभिन्न देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी, इसराईल की मोस्साद और फ़्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये और एक नेटवर्क खडा़ किया । इन खुफ़िया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान करने में सक्षम थीं । लेकिन "रॉ" ने इटली की खुफ़िया एजेंसियों से इस प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि "रॉ" के वरिष्ठ जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफ़िया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था ।
सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ १९८० में संजय की मौत के बाद । "रॉ" की नियमित "ब्रीफ़िंग" में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे ("ब्रीफ़िंग" कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे सिर्फ़ काँग्रेस महासचिव थे । राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों । रॉ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी अनुमति देने को कह दिया था, फ़िर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफ़िंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे । उन बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन खुफ़िया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ? या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी । राजीव गाँधी ने सोनिया से सन १९६८ में विवाह किया था, और हालांकि रॉ मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे । अन्ततः दस वर्षों से भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफ़िया संस्था से गठजोड़ कर लिया । क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सोनिया गाँधी ने । सीधी सी बात यह है कि वह इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं । एक मासूम गृहिणी, जो राजनैतिक और प्रशासनिक मामलों से अलिप्त हो और उसके इटालियन खुफ़िया एजेन्सियों के गहरे सम्बन्ध हों यह सोचने वाली बात है, वह भी तब जबकि उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी (वह उन्होंने बहुत बाद में ली) । प्रधानमंत्री के घर में रहते हुए, जबकि राजीव खुद सरकार में नहीं थे । हो सकता है कि रॉ इसी कारण से इटली की खुफ़िया एजेंसी से गठजोड़ करने मे कतरा रहा हो, क्योंकि ऐसे किसी भी सहयोग के बाद उन जासूसों की पहुँच सिर्फ़ रॉ तक न रहकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हो सकती थी ।
जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब सुरक्षा अधिकारियों ने इंदिरा गाँधी को बुलेटप्रूफ़ कार में चलने की सलाह दी, इंदिरा गाँधी ने अम्बेसेडर कारों को बुलेटप्रूफ़ बनवाने के लिये कहा, उस वक्त भारत में बुलेटप्रूफ़ कारें नहीं बनती थीं इसलिये एक जर्मन कम्पनी को कारों को बुलेटप्रूफ़ बनाने का ठेका दिया गया । जानना चाहते हैं उस ठेके का बिचौलिया कौन था, वाल्टर विंसी, सोनिया गाँधी की बहन अनुष्का का पति ! रॉ को हमेशा यह शक था कि उसे इसमें कमीशन मिला था, लेकिन कमीशन से भी गंभीर बात यह थी कि इतना महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी कार्य उसके मार्फ़त दिया गया । इटली का प्रभाव सोनिया दिल्ली तक लाने में कामयाब रही थीं, जबकि इंदिरा गाँधी जीवित थीं । दो साल बाद १९८६ में ये वही वाल्टर विंसी महाशय थे जिन्हें एसपीजी को इटालियन सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने का ठेका मिला, और आश्चर्य की बात यह कि इस सौदे के लिये उन्होंने नगद भुगतान की मांग की और वह सरकारी तौर पर किया भी गया । यह नगद भुगतान पहले एक रॉ अधिकारी के हाथों जिनेवा (स्विटजरलैण्ड) पहुँचाया गया लेकिन वाल्टर विंसी ने जिनेवा में पैसा लेने से मना कर दिया और रॉ के अधिकारी से कहा कि वह ये पैसा मिलान (इटली) में चाहता है, विंसी ने उस अधिकारी को कहा कि वह स्विस और इटली के कस्टम से उन्हें आराम से निकलवा देगा और यह "कैश" चेक नहीं किया जायेगा । रॉ के उस अधिकारी ने उसकी बात नहीं मानी और अंततः वह भुगतान इटली में भारतीय दूतावास के जरिये किया गया । इस नगद भुगतान के बारे में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.जी.देशमुख ने अपनी हालिया किताब में उल्लेख किया है, हालांकि वह तथाकथित ट्रेनिंग घोर असफ़ल रही और सारा पैसा लगभग व्यर्थ चला गया । इटली के जो सुरक्षा अधिकारी भारतीय एसपीजी कमांडो को प्रशिक्षण देने आये थे उनका रवैया जवानों के प्रति बेहद रूखा था, एक जवान को तो उस दौरान थप्पड़ भी मारा गया । रॉ अधिकारियों ने यह बात राजीव गाँधी को बताई और कहा कि इस व्यवहार से सुरक्षा बलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और उनकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसे में खतरे में पड़ सकती है, घबराये हुए राजीव ने तत्काल वह ट्रेनिंग रुकवा दी,लेकिन वह ट्रेनिंग का ठेका लेने वाले विंसी को तब तक भुगतान किया जा चुका था ।
राजीव गाँधी की हत्या के बाद तो सोनिया गाँधी पूरी तरह से इटालियन और पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों पर भरोसा करने लगीं, खासकर उस वक्त जब राहुल और प्रियंका यूरोप घूमने जाते थे । सन १९८५ में जब राजीव सपरिवार फ़्रांस गये थे तब रॉ का एक अधिकारी जो फ़्रेंच बोलना जानता था, उनके साथ भेजा गया था, ताकि फ़्रेंच सुरक्षा अधिकारियों से तालमेल बनाया जा सके । लियोन (फ़्रांस) में उस वक्त एसपीजी अधिकारियों में हड़कम्प मच गया जब पता चला कि राहुल और प्रियंका गुम हो गये हैं । भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को विंसी ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है, दोनों बच्चे जोस वाल्डेमारो के साथ हैं जो कि सोनिया की एक और बहन नादिया के पति हैं । विंसी ने उन्हें यह भी कहा कि वे वाल्डेमारो के साथ स्पेन चले जायेंगे जहाँ स्पेनिश अधिकारी उनकी सुरक्षा संभाल लेंगे । भारतीय सुरक्षा अधिकारी यह जानकर अचंभित रह गये कि न केवल स्पेनिश बल्कि इटालियन सुरक्षा अधिकारी उनके स्पेन जाने के कार्यक्रम के बारे में जानते थे । जाहिर है कि एक तो सोनिया गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अहसानों के तले दबना नहीं चाहती थीं, और वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर विश्वास नहीं करती थीं । इसका एक और सबूत इससे भी मिलता है कि एक बार सन १९८६ में जिनेवा स्थित रॉ के अधिकारी को वहाँ के पुलिस कमिश्नर जैक कुन्जी़ ने बताया कि जिनेवा से दो वीआईपी बच्चे इटली सुरक्षित पहुँच चुके हैं, खिसियाये हुए रॉ अधिकारी को तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था । जिनेवा का पुलिस कमिश्नर उस रॉ अधिकारी का मित्र था, लेकिन यह अलग से बताने की जरूरत नहीं थी कि वे वीआईपी बच्चे कौन थे । वे कार से वाल्टर विंसी के साथ जिनेवा आये थे और स्विस पुलिस तथा इटालियन अधिकारी निरन्तर सम्पर्क में थे जबकि रॉ अधिकारी को सिरे से कोई सूचना ही नहीं थी, है ना हास्यास्पद लेकिन चिंताजनक... उस स्विस पुलिस कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि "तुम्हारे प्रधानमंत्री की पत्नी तुम पर विश्वास नहीं करती और उनके बच्चों की सुरक्षा के लिये इटालियन एजेंसी से सहयोग करती है" । बुरी तरह से अपमानित रॉ के अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ । अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों के गुट में तेजी से यह बात फ़ैल गई थी कि सोनिया गाँधी भारतीय अधिकारियों, भारतीय सुरक्षा और भारतीय दूतावासों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती हैं, और यह निश्चित ही भारत की छवि खराब करने वाली बात थी । राजीव की हत्या के बाद तो उनके विदेश प्रवास के बारे में विदेशी सुरक्षा एजेंसियाँ, एसपीजी से अधिक सूचनायें पा जाती थी और भारतीय पुलिस और रॉ उनका मुँह देखते रहते थे । (ओट्टावियो क्वात्रोची के बार-बार मक्खन की तरह हाथ से फ़िसल जाने का कारण समझ में आया ?) उनके निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज सीधे पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के सम्पर्क में रहते थे, रॉ अधिकारियों ने इसकी शिकायत नरसिम्हा राव से की थी, लेकिन जैसी की उनकी आदत (?) थी वे मौन साध कर बैठ गये ।
संक्षेप में तात्पर्य यह कि, जब एक गृहिणी होते हुए भी वे गंभीर सुरक्षा मामलों में अपने परिवार वालों को ठेका दिलवा सकती हैं, राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी के जीवित रहते रॉ को इटालियन जासूसों से सहयोग करने को कह सकती हैं, सत्ता में ना रहते हुए भी भारतीय सुरक्षा अधिकारियों पर अविश्वास दिखा सकती हैं, तो अब जबकि सारी सत्ता और ताकत उनके हाथों मे है, वे क्या-क्या कर सकती हैं, बल्कि क्या नहीं कर सकती । हालांकि "मैं भारत की बहू हूँ" और "मेरे खून की अंतिम बूँद भी भारत के काम आयेगी" आदि वे यदा-कदा बोलती रहती हैं, लेकिन यह असली सोनिया नहीं है । समूचा पश्चिमी जगत, जो कि जरूरी नहीं कि भारत का मित्र ही हो, उनके बारे में सब कुछ जानता है, लेकिन हम भारतीय लोग सोनिया के बारे में कितना जानते हैं ? (भारत भूमि पर जन्म लेने वाला व्यक्ति चाहे कितने ही वर्ष विदेश में रह ले, स्थाई तौर पर बस जाये लेकिन उसका दिल हमेशा भारत के लिये धड़कता है, और इटली में जन्म लेने वाले व्यक्ति का....)

Thursday, November 10, 2011

वो मेरा बचपन

कितना खूबसूरत, मेरा वो अल्हड़ सा बचपन
कंचे की चट-चट में बीता वो दिन
जीत की खुशी कभी तो रहा कभी हार का गम
रंगबिरंगे कंचों में घूमता बचपन।
गिल्ली डंडे का है आज मैदान जमा
किसकी कितनी दूर,है यही शोर मचा
डंडे पे उछली गिल्ली कर रही है नाच
दूर कहीं गिरती,आ जाती कभी हाथ
भागते हैं कदम कितने बच्चों के साथ
गिल्ली डंडे में बीता है बचपन का राग।
कभी बित्ती से खेलते कभी मिट्टी का घर
पानी पे रेंगती वो बित्ती की तरंग
भर जाती थी बचपन में कितनी उमंग।
कुलेड़ों को भिगोकर तराजू हैं बनाए
तौल के लिये खील-खिलौने ले आए
सुबह-सुबह उठकर दिये बीनने की होड़
लगता था बचपन है,बस भाग दौड़
सारे खेलों में ऊपर रहा गिट्टी फोड़
सात-सात गिट्टियाँ क्या खूब हैं जमाई
याद कर उन्हें आँख क्यूं भर आई।
हाँ घर-घर भी खेला सब दोस्तों के साथ
एक ही घर में सब करते थे वास
हाथ के गुट्टों में उछला,वो मासूम बचपन
दिल चाहे फिर लौट आए वो मधुबन
तुझ सा न कोई और दूसरा जीवन
कितना खूबसूरत,अल्हड़ सा बचपन…

Saturday, November 5, 2011

मैं

माना गहरे तक ज़मीं में गड़ा हूँ,
मगर खुश हूँ, कि अपनी जड़ों पर खड़ा हूँ ॥

झुकता हूँ मैं सिर्फ़ मेरे ख़ुदा के आगे,
तू मुश्किलों से पूछ कि मैं कितना कड़ा हूँ ॥

लोग अपने लिए ग़ैरों का नामोनिशां मिटा देते,
मगर अपने लिए हर बार मैं सिर्फ़ ख़ुद से लड़ा हूँ ॥
उतरा लहर-सा कभी समंदर के सीने पर,
कभी कश्ती की मानिंद अपने साहिल से बिछड़ा हूँ ॥

तुझे अब हर पल नयी रंगतों का शहर दिखता हूँ,
क्या मालूम तुझे हर पल में कितनी बार उजड़ा हूँ ॥

हर तूफ़ान ने चाहा मुझे पत्तों-सा उड़ा देना,
पर बरसों से इसी राह पर पत्थर बनकर अड़ा हूँ ॥

अनगिनत ख़्वाहिशों के आशियां मेरे दिल में हैं,
मैं हरदम सुलगती इन बस्तियों से बड़ा हूँ ॥

Thursday, November 3, 2011

कहाँ है बिहार? एक प्रश्नचिंह............

चमचमाता बिहार. जगमगाता बिहार. दमकता और हीरों जड़ा बिहार. मुख्यमंत्री और सत्ता पार्टी का सपना की अपना बिहार चमचमाता, चमकता और जगमगाता हो. जी हाँ सफलता और खुशियाँ आयीं तो बहुत , बहुत से आयाम भी पाए गए. बहुत सी चुनौतियों को जीता गया पर क्या सचमुच अभी भी ये बिहार वो बिहार बन पाया है जो बनना चाहिए. कहाँ है बिजली कहाँ है? कहाँ है पानी? कहाँ है अब भी भ्रष्टाचार और असंतोष में कमी. कहाँ है आम जनता को आज भी सुकून, आराम और मौलिक सुखों को खुशियों की अनुभूति. मुझे ऐतराज नहीं है इस बात से की बिहार ने प्रगति की है. परन्तु सवाल वही है. आखिर घर में रोटी क्यों नहीं है?

बिहार की पढ़ी-लिखी जनता अपने लिए नौकरी और अच्छी लाईफस्टाइल तो निश्चित कर रही है पर बहार जाकर? क्या यहाँ की पिछडी जनता के दुःख-दर्द या सुविधाओं की कमी का एहसास है? आप पढ-लिख कर बाहर जा रहे हैं देश भर में नौकरी कर रहे हैं विदेशों का भ्रमण कर रहे हैं. विदेशों में नौकरियां पा रहे हैं और उनके लिए उनके देश या उनके परिवेश को अपना कर चार चाँद लगा रहे हैं.   पर क्या आप उनके बारे में सोंच रहे हैं वो आपके अपने रिश्तेदार भी हैं भाई-बहन भी हैं और अगर खून का नाता नहीं है तो तो कम से कम एक जगह के होने का एहसास तो है. आप कर रहे हैं उनके लिए कुछ? आप लड रहे हैं उनके लिए?   बिहार आगे बढ़ रहा है खुशी की बात है. बिहार के लोग आगे बढ़ रहे हैं, खुशी की बात है? बिहारी आगे बढ़ रहे हैं, ये भी खुशी की बात है. देश के कितने राज्य अपने राज्य का दिवस मानते हैं? हम तो वाकई उनसे आगे बढ़ रहे हैं. और आगे ही नहीं बढ़ रहे ये एहसास भी दिला रहे हैं. 
 पर ये सब तो दिखावा लगता है न ऊपरी दिखावा. क्यूंकि अंदर से तो आज भी बिहार, बिहारवासी, बिहारी आज भी पीछडे ही हैं. कुछ वर्गों को छोड़ क्या सभी विकास की ओर अग्रसित हैं? वक्त और माहौल शायद मैंने गलत चुना हो शायद आपको बताने के लिए पर क्या वाकई आपको लगता है की ऐसे वक्त में मुलभुत बातों को इनकार कर देना चाहिए. और अगर आप मानते हैं की इनकार कर देना चाहिए तो बताईए की आपको बिजली कितने घंटे मिलती है? आपको पानी मिलता है मुनिसिपलटी का? क्या आपको गन्दगी और सफाई से निजात मिली है? क्या आपको साफ़ सुन्दर और सुदृढ़ सड़कें मिली हैं. क्या आपको भ्रस्टाचार कहीं नहीं दिखता? क्या आपको ट्राफिक और प्रशासन से शिकायत नहीं है?

जगमगा दो ये शहर, गाँव-गांव, पहर-पहर जगमगा दो ये पूरी धरती ये नील गगन जगमगा दो. पर सिने की धधकती आरजुओं को मत कुचलो, की इनके भी फुल खिला दो. ज़रूरत बस बिजली–पानी और थोड़े से सुख की है. कुछ सपनों को पूरा करने की है.

आईये हम भी मनाएं खुशी . पर थोडा सा दिल में मलाल है की आज भी वो परिपूर्ण बिहार के लिए नहीं पर सब एक तरफ चल दिये हैं तो हम भी उनके पीछे  हैं. नहीं है इतनी खुशी.

Tuesday, October 18, 2011

मै हिन्दुस्तानी हूँ

न तू तू हूँ न मै मै हूँ , मै आज तेरी ही कहानी हूँ ,
सच कहता हूँ आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,
मै ज्ञान नहीं, मै ध्यान नहीं, अरमां नहीं, भगवान नहीं,
मत देख तू मुझको प्यारे, मै तेरी ही आँखों का पानी हूँ,
सच कहता हूँ आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,
... जो रूठ चले वो रूठ चले,
उनसे क्या सरोकार हमारा जिनके मंसूबे ऐसे टूट चले
हे खुदा तूने ये भेद क्यों बनाया है
हिन्दू ने क्या पाया जो मुस्लिम ने न पाया है,
सच कहता आज मै तेरी ही कहानी हूँ ,
आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,
अब तक रक्तपात हुआ सिर्फ इस बटवारें से
ऐसा लगता जैसे आसमान बिछड़ गया हो तारे से
न मै शर्मा ,न मै वर्मा, मै शास्वत कर्मा हूँ ,
खान न कहना प्यारे मै खान नहीं खानदानी हूँ
न तू तू हूँ न मै मै हूँ , मै आज तेरी ही कहानी हूँ ,
सच कहता हूँ आज तो मै सिर्फ हिन्दुस्तानी हूँ,

Sunday, October 16, 2011

जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........

सागर होती होगी दुनिया, इक पल में मै तर जाऊँगा,
ठान लिया है जो मन में, इक दिन मै कर जाऊँगा,
वादा मेरा इस दुनिया से, इस जग में जीने वालों से,
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा .........
ना समझौता न सुनवाई, ना काफ़िर की तारीखें
कलम उठाकर सस्त्र बनाकर सीधा ही लड़ जाऊँगा
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........
मेरी शिक्षा मेरा धन है, जीवन है जो सब पर अरपन है
खौले खून तो जेठ महीना बहते आंसू सावन है
परछाईं में रहने वालों, मुझको पागल कहने वालों,
कलम बना के अपनी मलहम, पीड़ा सब हर जाऊँगा
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, उस दिन मैं मर जाऊँगा ........

Tuesday, September 27, 2011

चाह

मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

चाहता मैं अपने हर साथियों के साथ रहना
चाहता हर होंठ पर मुस्कान धरना।
मैं दुखो से त्रान पाना चाहता हूँ।
मैं हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...। ।

सब सुखी, सानंद हों, यह कामना है
स्नेह की वर्षा सतत, यह भावना है,
मैं तुम्हारे प्यार का वरदान पाना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

तौलते है लोग पैसे से यंहा हर चीज को
वे फलों से आंकते है बीज को।
लाभ-लोभों की घुटन से मुक्त होना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

अर्थ के सब दास दानाब बन रहे है
वाक् छल से मनुजता को छल रहे है।
मैं सहज इंसान होना चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ..
. मैं तुम्हारे प्यार का भूखा अकिंचन
चाहता हूँ मीन-सा एक मुक्त जीवन
मैं तुम्हारा हो संकुं, वरदान एकल चाहता हूँ।
मै इक वसुंधरा चाहता हूँ
जहाँ हर दिल अजीज़ को बसाना चाहता हूँ...

Tuesday, September 6, 2011

मेरा जीवनपथ

मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो
मैं फूलों के सेज पर सोने नहीं,
कांटो पर चलने आया हूँ
तुम मुझको ना कहो विश्राम करो,
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को अब तो तूफ़ान करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो

अब तो अधर पर अंगार लेकर
पग पग पर मुश्कान लाया हूँ
अपने इस जीवन पथ में,
देखे हैं मैंने कई तूफ़ान यहाँ,
लौट गया जो भय से उनका क्या
मैं तो अब मर्घट से जीवन को बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चलाअब किस्मत से..
सौ बार हलाहल विष का प्याला पान करके आया हूँ ..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गती की मशाल आंधी में ही जलती है…
शोलो से ही श्रृंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही तो सजती है..
पग में गती आती है, छाले छिलने से..
अब तुम मेरे पग-पग पर जलती चट्टान धरो…
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो

फूलों से जग आसान नहीं होता है…
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है…
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्माण वहीं पर होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे…
तुम मेरी हर बस्ती अब वीरान करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता…
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वे मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..
मैं अंगारों से मिलने आया हूँ,
तुम यूं ना मेरी मंजिल आसान करो

Saturday, August 20, 2011

ज़रा सोचिएं (जय भारत )


देश को जिस हवा की जरूरत थी, आज शायद वो बयार बह निकली है । जिस साधारण व्‍यक्ति के असाधारण प्रतिभा को केंद्र सरकार हवा की मानिंद ले रही थी, वही आज सरकार के लिए खतरे की घंटी बन चुके हैं। आज उनके समर्थन में क्‍या बूढ़े क्‍या जवान, छात्र, कर्मचारी और व्‍यापारी भी सड़कों पर उतर रहे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि " कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्‍थ्‍ार तो तबीयत से उछालो यारो"। यहाँ निश्चित रूप से एक नयी पृष्टभूमि तैयार हो रही है । एक नयी व्यवस्था कि स्थापना का यह आगाज़ है।

ऐसे में मेरे मन में कई प्रश्न उठते हैं और मन ससंकित हो उठता है। प्रश्न यह उठता है कि ये आन्दोलन कितने प्रतिशत सफल होगी? इसके उत्तर कि गहराई में कई और सवालो का जवाब हमें देना होगा । सबसे पहले हम कितने जागरूक हैं? क्या सिर्फ एक भीड़ का हिस्सा तो नहीं बन रहे? यह आन्दोलन जिस धरातल पर तैयार हो रही है उस बिल कि जानकारी कितने लोगो को है? इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जब जब हमने अपने घरो में आग लगाईं है, तब तब उसपर दूसरों ने अपनी रोटियाँ सेकीं हैं। आज आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर चरम पर हैं । हम क्यों अपने ही घर को जलाने पर तुले हैं । आज जो ये भीड़ इकट्ठा हो रही है, उसमे कितनो को सत प्रतिशत मुद्दे कि समझ है?

इंदिरा गाँधी ने कहा था " शिक्षा वह माध्यम है जो हमें जाति, धर्म, तथा अन्य सभी बन्धनों से मुक्त करती है"। मेरा अर्थ कतई यहाँ किताबी शिक्षा से नहीं है। मै केवल यह कहना चाहता हूँ कि हम जागरूक होकर ससक्त बने और एक नए राष्ट्र निर्माण का अंग बने। आखिर कब तक हम एक चिंगारी के आस में अपने घरो में अपने आपको जलाते रहेंगे। जनमानस के उठते इस सैलाब को देखकर ये तो कहा ही जा सकता है कि कही ना कही और कुछ ना कुछ हमारे दिलो को कचोट रहा है । वर्तमान सरकार और व्यवस्था को ये तो समझ लेना चाहिए। हमे मिस्र और लीबिया कि क्रांति नहीं चाहिए क्योंकि उसके बाद का परिणाम भी तो हमे ही भुगतना है ।मै एक ऐसे व्यवस्था परिवर्तन कि बात केर रहा हूँ जिसमे हम सभी भागिदार बने और एक जागरूक भारत का निर्माण करें। हम भूल जाएँ अपनी गलतियों को लेकिन अपने आत्मा को पवित्र कर के और एक नए भारत का निर्माण करे ।

ऐसे में जरूरत है एक और जमीनी प्रयास की जिससे भ्रष्‍टाचार रूपी राक्षस का नाश हो सकता है। इसी महौल में समाज के कुछ जागरूक लोग संगठित होकर दूसरी मुहिम भी चला सकते हैं। यह मुहिम अस्‍पतालों, सरकारी कार्यालयों, पुलिस थानों और अन्‍य उन हर प्रतिष्‍ठानों पर चलनी चाहिए जहां रोजाना आम जनता किसी न किसी रूप में जाने को विवश होती है। उसकी इसी विवशता का लाभ उठाकर सरकारी अहलकार हों या अधिकारी, सब ठगते हैं। इसका प्रतिकार कर समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है। इतना ही नहीं यदि अन्‍ना को समर्थन दे रहे लोग ही यह संकल्‍प लें कि वह न तो घूस देंगे और न लेंगे, तो देश में एक नई सुबह आ सकती है। यह काम बहुत कठिन भी नहीं है, जरूरत इस बात की है कि हम भ्रष्‍टाचार का रस्‍मी विरोध करने के बजाए खुद ईमानदार बनें। ऐसा होने से निसंदेह हमारा देश फिर से सोने की चिडि़या बन सकता है। गरीब-अमीर हर कोई खुशहाल होगा। समाज में बढ़ रही कटुता पर अंकुश लगेगा।

धन्यवाद्

प्रशांत कौशिक

Friday, July 29, 2011

वक़्त नहीं

हर खुशिया है लोगो के दामन में,
पर एक हंसी के लिए ही वक़्त नहीं,
दिन रात दौड़ती इस दुनिया में
जीने के लिए ही वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का ही वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो मार चुके हम
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
अब तो वक़्त नहीं भई वक़्त नहीं..............................
गैरों की हम क्या बात करें
जब अपनों के लिए भी वक़्त नहीं
आँखों में नींद तो है
पर अब सोने के लिए भी वक़्त नहीं
दिल तो भरा है जख्मों से
पर अब रोने के लिए भी वक़्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की अब थकने का भी वक़्त नहीं,
पराएँ एहसानों की क्या कद्र करें हम
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
अब तू ही बता ऐ जिंदगी
इस जिंदगी का क्या होगा
जब हर पल मरने वालो को
जीने का भी वक़्त नहीं.............................

Thursday, July 28, 2011

मौत

कितना हौसला मिला है तेरे आने से,
अब तो मेरा ये आशियाँ सजा है,
सब कुछ लुटाने से..............
क्या बताऊँ कि
अब तो जिंदगी को भुलाए ज़माने गुज़र गए
ज़हर खाए भी ज़माने गुज़र गए
बहुत तस्सवुर मिला है तेरे लौट आने से............
सोचता हूँ जीते हुए ज़माने गुजर गए
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न आस
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
सच ही कहता हूँ अब तो हर रोज ही
फजीहत लगती थी जिंदगी
अब तो ख़त्म हुआ ये सिलसिला
ऐ मौत!तुझको पाने से ...........................

Friday, July 22, 2011

मेरी जिद है

आज कुछ कर दिखाने की जिद है,
सर्द हवाओं का रुख मोड़ लाने की जिद है....................

दीपक जलते हर आंगन में हैं,
फिर भी लोग तमस में क्यों हैं,
कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही,
आज सब कुछ बाहर लाने की जिद है............................

कल तक देखा सब कुछ,
औरों की भी सुन लिया बहुत कुछ,
देख लिया हमने वैभव भाषा का भी
अब तो फिर से तुतलाने की जिद है...........................

भूल चूका हूँ उन परी कथाओं को
जिन्हें दूंढा हर दिशाओं को,
खोया रहता इक ख्वाब परिंदों का
अब उनको फिर से पास बुलाने की जिद है...............................

सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे ,
हमको तो अच्छे लगते हैं अपने मंसूबे,
लहरें अपना नाम पता सब खो दें,
अब तो बस इक ऐसा तूफ़ान उठाने की जिद है
आज फिर कुछ कर दिखाने की जिद है......................

Tuesday, July 12, 2011

ऐ जिंदगी


थक गया हूँ चलते चलते,
अब ता उम्र सो जाना चाहता हूँ,
दो बूँद आसूं के गिराकर
ऐ जिंदगी इक बार फिर तूझे गुनगुनाना चाहता हूँ.


सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं

लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं

बिखरा पडा है तेरे ही घर में तेरा वजूद

बेकार महफिलों में तुझे ढूंढता हूँ मैं

थक गया मैं करते-करते याद तुझको,

अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ।

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा,

रौशनी दो घर जलाना चाहता हूँ।

आखिरी हिचकी तेरे जानों पा आये,
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ।

Sunday, July 10, 2011

ज़िन्दगी से मुलाक़ात कीजिये


आइये, चलिए कदम दो कदम साथ मेरे,
संग मेरे ज़िन्दगी से मुलाक़ात कीजिये
मिलकर जरा गुफ्त गूं की शुरूआत कीजिये.

जहाँ सवालों जवाबों में मशगूल है दुनिया,
कोई गुम है भीड़ में, रहता है कोई तन्हां यहाँ,
ठहरिये जरा घडी दो घडी को
कभी खुद से भी बात कीजिये.

बदन भर सजाना संवरना न काफी,
कभी आत्मा को भी अवदात कीजिये.

सफ़र की न जाने कहाँ होगी मंजिल,
कहीं दिन गुजारें, कहीं रात कीजिये.

घडी दो घडी के यहाँ हम हैं मेहमां
मेहरबान! खातिर मदारात करिए.

खुले आँख तो सब नज़ारे हवा हों,
गुरूर आप इन पर न बेबात कीजिये.

करेंगे फ़क़त आंसुओं की तिजारत
न ज़ाहिर यहाँ सबपे जज़्बात कीजिये.

सँवारे संवरती नहीं ज़िन्दगी ये
हुजूर आप ही कुछ करामात कीजिये.
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मदारात -सत्कार ; अवदात- सवारियें

Thursday, July 7, 2011

मेरी खामोशिओं को वो सजा दे जाएगी,
खामोशिओं में जीने की फिर वजह दे जाएगी,

ले गई मुझसे चुराकर जो खुद मुझको ,
एक दिन मुझको जीनें का फिर पता दे जाएगी

छेड़कर चुपके से मेरी सांसों का सोया सितार,
चिंगारियो को फिर हवा दे जाएगी

बंदिशें सब तोडकर झूठी रश्मों रिवाज का
मेरे क़दमों को एक नया रास्ता दे जाएगी

भूल ना जाऊं कहीं भूले से उसको
इसलिए अपनी चाहतों का वास्ता दे जाएगी

ए "कौशिक" क्यों ना करे दिल उस लम्हें का इंतजार
जो तबस्सुम लबों को, इस दिल को नया हौशला दे जाएगी...............

Sunday, March 27, 2011

फिर से


अँधेरा चीर के रौशनी आएगी फिर से,
ये शाख देखना लहलहाएगी फिर से.

खिज़ां से डर के बहारों के ख़्वाब मत छोड़ो,
गुलों पे आयेगी इक रोज़ ताज़गी फिर से.


ज़माना आजकल इतना बदल गया गोया,
कि लोग जी रहे मर मर के ज़िन्दगी फिर से.


हमारे दिल का दरीचा खुला ही रहता है,
किसी कि याद ही आये कभी कभी फिर से.


सुबह से शाम तलक सोचता रहा अक्सर,
कभी तो आदमी बन जाये आदमी फिर से.


जो ख़ुद को कर के हवाले नसीब के सोया,
उसे 'कौशिक" की शायरी जगायेगी फिर से.

Thursday, March 24, 2011

मुहब्बत

अगर कुछ कहना हो , दिल्लगी में कह डालिए,
जीना हो शुकून से तो अब मुहब्बत कर डालिए.
वो काफ़िर नहीं जो नाम खुदा का नहीं लेता
काफ़िर तो वो है जो इन्कार मोहब्बत से करता है,
छोड़ के इन बंदिशों को अब ये जाम अधर से लगाइए
इक बार बस अब मुहब्बत कर डालिए

नसीब तुझे जन्नत होगी या नहीं क्या पता ;
जन्नत बनी है उसके लिए जो मुहब्बत खातिर अश्क पीता है !
खोट दिल मैं है तो लाख कोशिशे कर ले ,
तू मुखातिब न हो सकेगा उंनसे जो ये जाम पीता है,
छोड़ कर साड़ी उलझनों को अब इस जहाँ में आईये
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......

साथ इसका मिले तो भले ये दुनिया छूटे ,
सिर्फ सोचता है उसको,फ़िक्र इसकी ना करता है !
न मंदिरों मैं भगवान्,मस्जिदों मैं कहाँ खुदा मिलता है ;
वो तो प्यार करने वालों के मन्दिर-ऐ-दिल मैं रहा करता है !
मानकर इस कौशिक की बात इक बार ये प्याला उठाइए
आकर यहाँ इक बार दिल तो लगाइए......
हमें तो मुहब्बत के सिबा कुछ आता नहीं
हम बहलाते हैं दुनियाँ को कोई हमें बहलाता नहीं
अश्क तो पागल हैं कुछ सोच के निकल आते हैं
और कुछ ऐसा भी नहीं की कोई याद हमें आता नहीं
हम वफ़ा करते रहे और जख्म दिल पे खाते रहे
कोई लाख चाहे यादें फिर भी भुला पाता नहीं
कौन 'दीपक' कैसा ' सवेरा' सब खो जाएँगे
पैगाम अपनी मौत का कोई खुद को सुना पाता नहीं
कोई शिकवा नहीं अपनों से न गिला तुझ से
हम बुलाते हैं खुदा तुझको पर तू आता नहीं
बंदिशें मेरी नहीं तेरी ही होंगी शायद
वर्ना तू भी रोता साथ मेरे,मुस्कुराता नहीं
हम चले जाएँगे दुनियाँ से मुस्कुराते हुए
कोई मुझसा जशन-ए-ग़म मना पाता नहीं

Tuesday, March 22, 2011

तेरी मर्ज़ी

कह दिया था सबकुछ आँखों से
फिर भी होंठ कपकपाया था
थामना न थामना थी तेरी मर्ज़ी,
मैंने तो अपना हाथ बढ़ाया था.
बुला रहा थी या कहा था अलविदा
देर तक हाथों को हिलाया था.
करता हूँ इंतज़ार ख्वाबों में
ख्वाबों को तुने दिखाया था
अब भी याद करती क्या मुझको
हिचकी ने कल नींद से जगाया था............

Thursday, March 10, 2011

एक कहानी

एक कहानी मैं लिखता हूँ , एक कहानी तू भी लिख !
बादल बादल मैं लिखता हूँ ,पानी पानी तू भी लिख|

बीत गई जो अपनी यादें, उन यादों को भी तू लिख!
एक निशानी मैं लिखता हूँ, एक निशानी तू भी लिख|

इस कलम में डाल के स्याही, लिख दे जो मन में आए!
नई कहानी मैं लिखता हूँ ,एक पुरानी तू भी लिख |

जीवन की इस भाग दौड़ में, क्या खोया तुमने हमने?
एक जवानी मैं लिखता हूँ, एक जवानी तू भी लिख |

हर व्यक्ति में छिपा हुआ है,वादी भी प्रतिवादी भी!
सारी सजाए मैं लिखता हूँ, काला पानी तू भी लिख |

Tuesday, March 8, 2011

ख्वाइश


मेरी आँखों को कुछ अच्छा न लगे
कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़रें मिलाना,
कि दिन का हर पल हर लम्हा सुहाना लगे
कुछ ऐसे तुम मेरे साथ कुछ वक़्त बिताना,

कि हँसी मेरे लबों से उतरना न चाहे
कुछ ऐसे मेरे लिए तुम मुस्कुराना,
कि हो जाये मुझे खुशियों कि आदत
कुछ ऐसे मेरी जिंदगी से ग़मों को मिटाना,

कि तुम देखती रहो मुझे हरदम
कुछ ऐसे तुम मुझे अपने सामने बिठाना,
कि मैं नाराज़ होना चाहूँ बार-बार
कुछ ऐसे तुम मुझे रूठने पर मनाना,

कि करता रहूँ तुझे प्यार उम्र भर
कुछ ऐसे शमा-ए-मुहब्बत को जलाना,
कि हो मेरे बसेरा कहीं और नामुमकिन,
कुछ ऐसे मुझे अपने दिल में बसाना,

कि बन जाओ मेरे दिल कि धड़कन
कुछ ऐसे मेरे दिल में समाना,
कि नामंज़ूर हो मुझे किसी और का होना
कुछ ऐसे तुम मुझे अपना बनाना,

कि मुझे बारिश कि बूँदे भी अधूरी लगे
कुछ ऐसे तुम मुझ पर प्यार बरसाना,
कि बन जाएं हम मुहब्बत की मिसाल
कुछ ऐसे तुम इस रिश्ते को निभाना,

कि जिंदगी का आखिरी पल भी हसीन लगे
कुछ ऐसे तुम मुझे अपने गले से लगाना,
कि मौत भी हमें जुदा न कर पाए,
कुछ ऐसे मैं तेरा हो जाऊँ, कुछ ऐसे तुम मेरी हो जाना,

Monday, March 7, 2011

फिर इक बार रौशन ये शमां हो जाए,
जो तेरी इंनायत इक बार दुबारा हो जाए,
मै फिर जाग उठूं इस सैया से
जो फिर इक बार क़यामत हो जाये................

To be continued.............

Friday, March 4, 2011

सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है,

ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है,

एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं है,

जब से मैंने एक बार कहा था, माँ-मुझे डर लगता है!

रू बरू

चलो आज जिंदगी से रू बरू हो जाए,
तलाशें अपने अक्श को टूटे हुए आईने में,
तारों में अकेला चाँद जगमगाता है,
मुश्किलों में ही अक्सर इंसान ही डगमगाता है,
चलो इन लक्जिशों को संभाल लें
और फिर शुरु हो जाएँ
चलो जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................

हर रोज ही तुम्हारा इम्तिहान है,
ये जंग ही तुम्हारी पहचान है,
कहाँ इख़्तियार होता है लम्हों पर,
उम्मीद है कुछ पल और ठहर जाएँ
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................

सोचता हूँ मुझको हुआ क्या है,
इस दर्दे ए दिल की दावा क्या है
इस मंजर का मुझे इल्म ना था,
बीते हुए लम्हों में कोई गम न था,
काश ये शब् यही यही ठहर जाये
हम जिंदगी से फिर रू बरू हो जाए....................

Friday, February 25, 2011

एक इजहार

आज चलो फिर एक इजहार करता हूँ,
ए खुदा, मै तुझसे इश्क-ए-इकरार करता हूँ...
इस चमन-ए-दहर में अब किस से दिल लगायें,
चलो अब तुमसे गुफ्तार करता हूँ.................................

टुटा है ये दिल दुनिया से,
तेरा तगाफुल अब सह न पाउंगा,
जिंदगी की अब शब भी सहर गयी,
अब तो चेहरे पे तबस्सुम दे दे,
अब तो तुझमे ही फिरदौस दिखता है......
अब तो तेरे तलत-ए-मेहर का इंतजार करता हूँ....................

वो मेरा दिल ही क्या जिसकी इल्तजा तुझसे मिलने की ना हो,
मै रहगुज़र जाऊंगा अगर तू संग बन गया हो,
तू परेशां न हो और कुछ देर पुकारुंगा चला जाऊंगा,
शब-ए-तारीक गुजारुंगा चला जाउंगा,
तेरे दर पे बस ये हिज्र सह नहीं सकता,
इसलिए ये इजहार करता हूँ,
ए खुदा, मै तुझसे मोहब्बत का इकरार करता हूँ...
----------------------------------------------------------------------------------------
शब्दों का अर्थ- चमन-ए-दहर: दुनिया, गुफ्तार; बातचीत करना, तगाफुल; उपेकछा करना
शब: रात, सहर:गुजरना, तबस्सुम; मुस्कुराहाट, फिरदौस: स्वर्ग, तलत-ए-मेहर:दया
शब-ए-तारीक: रात, हिज्र; जुदाई...........

Thursday, February 24, 2011

तेरे दिल मैं हूँ मैं इक आरज़ी की तरह
आँखों मैं छुपा ले पलकों की हिफाजत दे दे !
तेरे दिल को बना लू मैं सराय अपनी -२
वक़्त-बे-वक़्त आम्दोरफत की इजाजत दे दे !
मेरी गलतियों को मुआफ करके मुस्कुराना बस -२
आँखों से न बहे आंसुओ को ये हिदायत दे दे !
तू जो चाहता है मैं वो तुझको ला क दूंगा -२
बस घडी भर की मुझको मोहलत दे दे !
हर रास्ते पे चलूँगा मैं साथ साथ तेरे -२
करके वादा मेरी बनजा इतनी सी बस इनायत दे दे !
मैं नहीं मांगता तुझसे बस और जयादा - २
मेरी बेवफ़ाईओ की मुझको अदावत दे दे !
तुझ से क्या माँगू मैं अपने दिल की ज़ानिब -२
कर दे सरोबार " कौशिक" को इतनी मोहब्बत दे दे !

Wednesday, February 23, 2011

मेरा अस्तित्व

मै भटकता रहा अपने अस्तित्व के तलाश में,
अलग अलग रूपों को- चोलों को धारण किया...

कभी तरु बना
तो लोगों ने काट दिया,
कभी बना पुष्प
पर लोगो ने तोड़ लिया,
पत्ता बना तो लोगो ने मसल दिया,
दीपक बना तो बुझा दिया गया....

अंततः मै पत्थर बना
और आश्चर्य!!!!
लोग मुझे पूजने लगे...........

Tuesday, February 22, 2011

मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

हँसी आती है अपनी अदाकारी पे खुद हमको
बने हैं खाकशार और वो आसमां छोड़ आए हैं

जो एक पतली सड़क मेरे आसियें से जाती थी
वहीं ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं

वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है
कि हम उजलत में जमाना का किनारा छोड़ आए हैं

उतार आए मुरव्वत और रवादारी का हर चोला
वो अपना हर किला छोड़ आए हैं

ख़याल आता है अक्सर धूप में बाहर निकलते ही
हम अपने गाँव में पीपल का साया छोड़ आए हैं

वो सरज़मीं वो खज़ाना दिलों का
ये सब कुछ था पास अपने, ये सारा जहाँ आए हैं

दुआ के फूल जहां तकसीम करते थे
गली के मोड़ पे हम वो शिवाला छोड़ आए हैं

बुरे लगते हैं शायद इसलिए ये सुरमई बादल
किसी कि ज़ुल्फ़ को शानों पे बिखरा छोड़ आए हैं

अब अपनी जल्दबाजी पर बहुत अफ़सोस होता है
कि एक खोली की खातिर राजवाड़ा छोड़ आए हैं

Monday, February 21, 2011

‘कौशिक’ की धुन

कभी हमसे दिल लगाकर तो देखो,
अपनी रंजिशों को भुलाकर तो देखो,
आसमान उतर आएगा तुम्हारे आगोश में,
जरा हरी रेशमी सांस की सरजमीं में ,
मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ।।

मसीहे मिलेंगे तुम्हें दोस्ती के ,
तराने मिलेंगे जवां ज़िन्दगी के,
चाँद भी उतर आएगा तुम्हारे पहलू में,
रकीबों को घर में बुलाकर तो देखो,
ख़्वाबों की तितली उड़ाकर तो देखो ।।

हमीं हैं , हमीं हैं , हमीं हम हमेशा ,
जरा किताबों से गर्दे हटाकर तो देखो,
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ज़रा गुदगुदाकर तो देखो ।।

चलो बनायें नया लय सजाएँ एक नया सुर ,
कि ‘कौशिक’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो ।।

Saturday, February 19, 2011

राष्ट्र निर्माण

आज हर तरफ पुकार है,
छाया अंधकार है,
अस्मतें हैं लुट रहीं,
फिर भी हम चुप रहे........

भ्रस्टाचार बढ़ रहा,
गरीब अब मर रहे,
अमीर और बढ़ रहे,
फिर भी हम चुप रहे........

घर हमारा बँट रहा,
दीवारें है गिर रहीं,
रोटियां अब छीन रहीं,
फिर भी हम चुप रहे........

कोंख अब उजड़ रहीं,
मांग सूनी हो रहीं,
घर-बेघर हो रहे,
फिर भी हम चुप रहे........

आखिर कब तक हम चुप रहें
अब तो पुकार लें अपने इस जमीर को,
आह्वाहन है एक क्रांति की,
तोड़ दें हर भ्रान्ति को,
कदम हम मिला रहे
नया राष्ट्र बना रहे.......
नया राष्ट्र बना रहे.......

Friday, February 18, 2011

राष्ट्र की पुकार

आज तोड़ दो बंदिशों को,
छोड़ दो इन रंजीशों को,
यूँ हिम्मत हार जाने से क्या होगा,
काफूर हो नहीं सकती ये मजलिशें,
मोड़ दो इन रास्तो को,
चलो फिर एक सिंहनाद के साथ,
उस गर्जना के साथ,
चीर दो इस जमीं को,
फिर पुकार लो उन हौसलों को,
खो चुके हो तुम जिन्हें,
स्वतः आसमां डूब जाएगी आगोश में,
माँ पुकारती है तुम्हें
एक नयी क्रांति के लिए,
दिल से निकाल दो अब हर खौफ को,
आज फिर निर्माण होगा,
तुमसे एक नए राष्ट्र का,
ये शांति नहीं है श्मसान की,
ये आगाज है एक नए तूफ़ान की,
अब तुम उबाल लो अपने इस रक्त को
माँ पुकार रही अपने हर भक्त को
दिखा दो अब पिपाशुओं को,
चाहते हो अगर उन किलकारिओं को
तो चलो फिर एक अट्टहास के साथ
छोड़ दो जमीन पर एक नया पदचाप,
राष्ट्र निर्माण के लिए,
नए जमीन के लिए,
नए आसमान के लिए............

Thursday, February 17, 2011

मेरी कसम

तुझसे मिलकर ये क्या गजब कर चले,
दिल में दर्द ये अजब भर चले,
कल तक वीरान थी जो जिंदगी,
आज उसे रौशाने-गुलज़ार हम कर चले.......

खुदाया अब रहेगी या जाएगी मेरी जां,
अब तो ये खौफ भी हम छोड़ चले,
अब यूं आँखे चुराने से क्या होगा,
जब हम अपना ये नूर ही छोड़ चले.........

चुना जिनकी राहों से कांटे,
वे उन राहों को ही छोड़ चले,
मन वे खफा हैं ज़माने से,
अब हमसे भी मुह मोड़ चले....

अब तो ये तुझ पर ही ही है उम्मीदे-चिराग,
तू जलाकर चले या बुझाकर चले.........

Wednesday, February 16, 2011

बेरुखी को छोडि़ए

प्यार है अगर दिल में तो फिर
बेरुखी को छोडि़ए
आदमी हैं हम सभी
इस दुश्मनी को छोडि़ए

गैर का रोशन मकां हो
आज ऐसा काम कर,
जो जला दे आशियां
उस रोशनी को छोडि़ए

हैं मुसाफिर हम सभी
कुछ पल मिलजुल कर रहें
दर्द हो जिससे किसी को
उस खुशी को छोडि़ए

प्यार बांटो जिंदगी भर
गम को रखो दूर-दूर
फिक्र आ जाए कभी तो
जिंदगी को छोडि़ए

गुल मोहब्बत के जहां पर
खिलते हों अकसर
ना खिलें गुल जो वहां तो
उस जमीं को छोडि़ए

जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए

सोंच बदलो

जरा से झोंके को तूफान कहते हो

टूटता छप्पर है आसमान कहते हो



उठो पहचानो मृग मरीचिका को

मुट्ठी भर रेत को रेगिस्तान कहते हो



अब तो बदलनी पड़ेंगी परिभाषाएं

सोचो तुम किनको इंसान कहते हो



नैनों का जल अभी सूखा नहीं है

पहचानो उन्हें जिन्हें महान कहते हो



बदलो अपनी सोंच,

जानते हो किनको भगवान कहते हो



जमाने को मालूम है बदमाशियाँ

कैसे अपने को नादान कहते हो



कभी झाँका है अपने भीतर "कौशिक"

औरों को क्यों शैतान कहते हो

Monday, February 14, 2011

वैलेंटाइन डे पर

मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना |
कोई चराग बुझ जाये , वो न हवा करना ||


मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …


तुमसे मिलने से पहले , था मैं अजनबी की तरह |
अब जी रहा हूँ जिंदगी को , जिंदगी की तरह ||


दम निकल के भी न निकले वो दवा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना ….


तेरे ख़याल का मुझको , खबर हमेशा रहे |
तू हर किसी के शक्ल में है , मुझे तो ऐसा लगे ||


जला दिए हो शमां दिल में, तो न बुझा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ ,इतनी बस दुआ करना …


तेरे रहमत से आई है, बहार गुलशन में |
तेरे जाज़िब-ए-बदन, का हुक्म, है मेरे मन में ||


भुला के जी न सकूँ तुझको, ये बद्दुआ करना ,
मैं प्यार करता रहूँ, इतनी बस दुआ करना ...


मिली है ठोकरें हर दर से, क्या सुनाऊं तुझे |
अजीज लोग ही पत्थर, गिरा के मारे मुझे ||


खाएं है जख्म बहुत , तू भी न दगा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …


यूँ तो हर लोग इश्क में , फ़कीर होते हैं |
मिली है इश्क-ए-जफ़र, जिसके तक़दीर होते हैं ||


मेरे नशीब को , कुछ ऐसे ही सजा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …


तेरे तासीर की नजाकत ने असर कुछ ऐसा किया |
बहार भर गई चमन में , तेरे रहमत का शुक्रिया ||


आब-ए-चश्म आश्ना को , न ख़ुदा करना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना ...


मिली शोहरत है मोहब्बत की, जिस तरह से तुझे |
तू भी बदले मुहब्बत में , निशार करना ||


“कौशिक” बिछड़ जाए कही, तो हमें न दिल से जुदा करना,
मैं प्यार करता रहूँ , इतनी बस दुआ करना …

नादान – गजल

नादां है नासमझ है परेशां है बेवजह
तन्हा किसी खयाल मे जीता रहा है वह


पाया है यूं जवाब सवाले हयात का
गुमसुम है, किसी बात पर करता नही जिरह


प्यासा है पर शराब का रखता नही गरज
अर्से से आपसार को पीता रहा है वह


काफ़िर है मगर इश्क़ से रखता है वास्ता
जीता नही सुकून से इन्सां किसी तरह


पहलू मे जहां खुद से भी रहता है गुमसुदा
वर्षों उसी नकाब को सीता रहा है वह


लड़ता है जमाने से क्यूं डरता नही बसर
घायल है मगर बेसबब करता नही सुलह


कहते हैं लोग बाग ये किस्सा यकीन से
कांटा था कभी बाग मे पायी नही जगह


हैरां है आफ़ताब भी शब है कि शाम है
जागा है सारी रात या आयी नही सुबह

तेरी बेवफाई

कब तक दगा करेगी तू किस्मत,
कभी तो वफ़ा करेगी.
खीच लाऊंगा तुझे मंजिल तक,
चाँद तारों से सजा के,
आसमां पर बिठाऊँगा.....

माना तुझे गुरुर है अपने पर,
पर मेरी भी कैफियत कम नहीं है,
आजमाना है जितना तू आजमा ले,
इक दिन तुझसे ही सल्तनत सजाऊंगा,

खफा नहीं हूँ तुझसे,
शिकवा नहीं कर रहा मै,
पर तू है बेवफा तो क्या,
एक दिन तुझसे वफ़ा मै ही निभाऊँगा

अभी ख़ाक में चल रहा हूँ मै,
माना तेरे हौसले भी हैं बुलंद
पर शिकस्त मेरी पहचान नहीं है,
मै एक दिन ज़ुल्मत को चीरकर,
सूरज निकाल लाऊंगा,

तू कब तक दगा करेगी
तुझे मै ही सजाऊँगा
मै ही वफ़ा निभाऊँगा

कौशिक

Sunday, February 13, 2011

वो बीता पल


वो मेरी कश्ती, वो बारिश का पल,
वो मेरा आँगन और आँगन की बाती,
माँ की वो ममता, वो किस्से कहानी,
अब तो छूटा मेरा बचपन वो उसकी निशानी............

वो आँगन की महफ़िल,
वो मेरा मचलना,
वो खिलखिलाना आटें की चिड़ियाँ को पाकर,
वो फूलों की कलियाँ, वो डेहरी पर बादल,
कैसे भुला दूं मै वो बचपन, वो उसकी निशानी.....................

वो माँ का बुलाना और मेरा सताना,
वो दादी का चश्मा लेकर छुपना छुपाना,
कैसे पुकारूँ मै उस पल को,
अब तो लगता ये सूना जमाना.....................

वो मस्तियां वो शेखियां अब मुझे कोई लौटा दे,
उन बचपन के गलियों का आज फ़िर से पता दे|
इस जवानी के मेले में तन्हा सा हो गया हू मैं,
यादों के धागों में सपनों के मोती पिरो कर
कोई तो मेरे उस बचपन का पता दे॥

Saturday, February 12, 2011

WEBNODE :: Prashantkausik(मेरी दृष्टी मेरी सोच )

WEBNODE :: Prashantkausik(मेरी दृष्टी मेरी सोच )

Thursday, February 10, 2011

मैं

मैं जिंदगी का साजो सामान बेचता हूँ,
हार चुके हैं जो रण में उन्हें रण विजय का अरमान बेचता हूँ,
पहचानों मुझे वक़्त के इस सफ़र में,
मैं वही हूँ जो पंछिओं को उड़ान बेचता हूँ,
एक खुला असमान बेचता हूँ...............

किसकी तलाश है तुम्हे मएखानें में
ढूंढते क्या हो हर पैमाने में,
यूं टूट जाने से क्या होगा, गम छिपाने से क्या होगा,
चलो मेरे साथ ,
मैं हर दिन चिरागे शाम बेचता हूँ..................

बैठे क्यों हो इन खामोशिओं में,
पहचानता हूँ मै तुम्हारे अधर को
देखे हैं मैंने भी वो ख्वाब,
टूटे हैं जो तुम्हारे दिलों में
पर यूं रूठ जाने से क्या होगा,
तुम सुनो मेरी इस आवाज़ को
आकर मिलो तो मुझसे,
चलो मैं तुम्हे इक नया मुकाम बेचता हूँ.
खामोशिओं की मौत भी गंवारा नहीं मुझे
मैं तो हेर दिन इक तूफ़ान बेचता हूँ
जिंदगी का साजो सामान बेचता हूँ.



Wednesday, February 9, 2011

कौन हूँ मैं???



कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
.....
मयकदे में जाते ही फिर इक कहानी हो गयी,
कातिलाना मदहोश मेरी ये जवानी हो गयी,
अब ढूंढें तो दूंढ़े किसे इस शहर में,
सुना है मेरी यादों में अब तो वो दीवानी हो गयी,

आज कहता हूँ आपसे ईमान से,
जिंदगी तो मुझसे बेमानी हो गयी,
खुशियाँ भी मिलती है अब तो गम के चादर ओढकर,
मौत तो मासूम है ये जिंदगी ही सयानी हो गयी...

मिला जब मै आईने से,
मेरा अक्श भी मुझको देखकर रोता है,
क्या कहूँ उससे अब इस तूफान के बाद,
जब मेरी ये रूह ही बे रवानी हो गयी.

प्रशांत कौशिक

Tuesday, February 8, 2011

बचपन


इस दागदार दुनिया में , गुनाह लगता हैं हैं बड़ा हो जाना....
बस बचपन दिखता बेदाग यहाँ....,
गुजारिश मेरे मौला मुझे सच्चा जी लेने दे ..
इस दुनिया में मुझे बच्चा फिर से हो लेने दे ....

कुछ कह ना सकूँ , चुप रह ना सकूँ,
जीवन की इन राहों में
अब तो मैं जी ना सकूँ , मर न सकूँ,
मेरे मौला अब तो इन राहों में मुझे कच्चा रह लेने दे,
मेरे दिल कि कुछ बातें दिल की ज़ुबानी कह लेने दे
इस दुनिया में मुझे बच्चा फिर से हो लेने दे ....

जीवन का वो पल भी अजीब होता था.
न हँसने की वजह ही होती थी न रोने का बहाना होता था
अब तो मेरे दिल का हर कोना जैसे सुना सुना रहता है,
ना तो अब ये हँसता है ना ही अब ये रोता है,
गुजारिश मेरे मौला फिर से कुछ पल तो हँसने और रोने दे,
कुछ पल फिर से जी लेने दे,
इस दुनिया में मुझे बच्चा फिर से हो लेने दे ....

Friday, February 4, 2011

मन का सागर


अशांत सागर है ये मन मेरा पत्थर ना फेकों ए हमनशीं
दर्द की लहरें हैं, ना खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं

कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो .

ठंडी आहों का भी असर तुम पर अब होता नहीं
मनुहार कर के भी तो ये दिल पिघलता नहीं .

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरा 'मैं' तुम्हारे 'मैं ' से मिलते नहीं.

लो बुझा लेता हूँ अरमानों की इस कसकती लौ को
दफ़ना देता हूँ तुझमें ही इन दगाबाज़ चाहतों को.

प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.

इस सागर में तुम पत्थर न फेंको ए हमनशीं
पत्थर न फेंको ए हमनशीं...........

Wednesday, February 2, 2011

ये मेरा आगाज़ था, अंदाज़ तो बाकी है,
अभी तो सिर्फ पहाड़ों को लांघा है, अभी तो खुला असमान बाकी है,

कह दो उनसे जो खिलखिलाते हैं,
हार गया इस रण में तो क्या,
ढल गया मेरा सूरज तो क्या
अभी तो मेरा इम्तहान बाकी है

मुझे डर नहीं इस अँधेरे का,
खौफ नहीं उस तूफ़ान का भी,
शाम ढल गया है तो क्या,
अभी तो मेरी ख्वाहिशों की उड़ान बाकी है.

कहते है लोग तो कहने दो,
मैं वो धुआं नहीं जो उड़ जाऊँगा
मैं तो मील का पत्थर हूँ जो कभी हिला ही नहीं,
बता दो उन्हें अभी तो मेरा सूरज ढला है
अभी तो मेरा चाँद बाकी है.

एक इंतजार


मै आऊंगा चंदा की झिलमिल चांदनी बनकर,
बारिस की फुहार बनकर,
सुनोगी तुम मुझे कोयल की कूक में,
दिखुंगा मै तुम्हे शाम की चिराग में,

लौटूंगा जब मै तुम्हारे ख्वाबों में,
एक नई रवानी बनकर,
बसंती बयार बनकर,
महसूस करोगी तुम मुझे पवन के हर झोंके में,

सूरज की पहली किरण में,
पंछिओं के सुर के साथ,
छूवूँगा तुम्हें जब मै चुपके से,
तब पहचान तो लोगी स्पर्श मेरा.


प्रशांत कौशिक

Tuesday, February 1, 2011

ये रोशनी

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सोचना ये है की रौशनी आएगी कैसे,
जो अंधेरो में है उन्हें रास्ता दिखाएगी कैसे,
हम यूहीं न मर जाये औरो की तरह,
लोगो को हमारी याद आएगी कैसे.

समां चिनगारियो से न रोशन होगी,
रास्ते तो कट ही जायेंगे,
पर मंजर तूफ़ान का आने से पहले,
हम अपना आशियाँ लुटाये भी तो कैसे,

लोग पूछते हैं इस जख्म के बारे में,
कुछ तो बताते है इस की दवा भी,
खुद ही लुटाया था दामन अपना,
अब उन्हें बताएं भी तो कैसे.

प्रशांत कौसिक

Meri gali se wo jab guzarti hogi,
Jaroor kuch der tharti hogi,
Mujhe bhoolna itna aasan to naho hoga,
Dil me kuch kasak hoti to hogi.

Saath jo dekhe the sapne,
Wo aanko me ek baar ubharta to hoga,
Jab koi baho me leker choomta hoga,
Mera pyar siharta to hoga,

Aaj bhi uski julfo me meri khoosboo samayi hogi,
Jab bhi aayne ke samane wo sawarti hogi,
Poorwaiya ka ek jonkha use choota to hoga.

Mana ki wo hamse khafa hai,
Hamse gooft goo na kerne ki kasam khayi hai,
Per hame yakin to jaroor hai,
Hamare merne ke baad
Do aansoo kushi ke wo girati to hogi.

MBA

एम.बी.ए वो है जो पक गया है,
फिनांस की पढ़ाई मे, मार्केटिंग की लड़ाई मे,
अधीनता की गहराई मे
सहयोग की बुनाई मे



एम.बी.ए वो है जो फस गया है
कॉर्परट पोर्ट्फोलीओ रणनीति के काल मे
प्लेस्मन्ट कम्पनी की चाल
परीक्षा और निर्दिष्टीकरण की मार मे



एम.बी.ए वो है जो
लंच मे करता है ब्रेकफास्ट,
दिन को आराम, रात को करता है काम



एम.बी.ए वो है जो पागल है,
रम और विस्की के प्यार मे,
सिगरेट पीने के जाल मे,
गाने सुनने की तकरार मे.



एम.बी.ए वही है जो,
सुरुवात मे करता पढ़ाई,
बाद मे करता घुमाई,
कक्षा मे मिलता आन-लाइन,
शाम मे मिलता आफ-लाइन



एम.बी.ए करने के जंजाल मे जो फसा,
सुख चैन से लुटा,
परन्तु एम.बी.ए जिसने किया,
पैसे ने उसको छुआ.

Monday, January 31, 2011

Check out APNA BHARAT « PRASHANT KAUSIK

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Friday, January 28, 2011


Paharo se chalte chalte,
Samadaro se guzarte guzarte,
Yadon ke kaarwan se,
Mai tumhe hi doondhta hoo.

Apne har khwaiso me,
Rooh ki har aajmaiso me,
Har soch or har saaz me,
Mai toomhe hi doondhta hoo.

Muskura rahi hai tanhai meri,
Badalon si ho gayi rooswai meri,
Sayad yahi mukaddar hai mera,
Phir bhi mai toomhe hi doondhta hoon

Thursday, January 20, 2011

Suno bahut viran masum me
Tumhare dil me rosan ek dia,
meri nisani hai,
agar mai bhul jau,
to itna yaad rekhna tum,
samandar mera kissa hai
hawa meri kahani hai.

Wednesday, January 19, 2011

तड़प उसकी मोहब्बत की

फूलों से दोस्ती करके देखी ,अब काँटों को आजमाना है ,
मोहब्बत हमको मिले ना मिले ,दर्द से रिश्ता पुराना है !
अपने दिल की आखिरी ख्वाहिश पूछ ले ,
मेरे सफ़र को इक रात और है फिर चले जाना है !
दौर चाहे कैसा भी आये मुझको रोना नहीं है ,
बहा दे आज सारा जितना आंसुओं का खजाना है !
लोग कहते है तू ज्यादा मुस्कुराने लगा है ,
क्या बताऊँ ये तो जख्म छुपाने का बहाना है !
अब नहीं मुझे मरहम-ऐ-दर्द-ऐ-दिल की जरुरत,
अब तो काम मेरा वक़्त-बेवक्त जख्म दुखाना है !
उसका दिया जख्म मेरी ताकत सी बन गया है ,
ज़िन्दगी हर पल अब नया जोश नया तराना है !
आज तू तड़पता है उसकी मोहब्बत मैं
कल उसको अपनी गलती पे पछताना है

Thursday, January 13, 2011

ज़िन्दगी
हम जलते रहे शमां कि तरह हर पल,
इतने जले कि शब् भी सहर हो गई !
अब और नहीं जल सकता खत्म है आरजू ,
ये शब् भी तो खत्म होती नजर आती नहीं !

ये रस्ते ये मंजिले है पुराने हूँ वाकिफ में इनसे ,
इनसे गुजरा हूँ कई बार और फिर गुजर रहा हूँ !
मुझे मंजीलें मिली वो जो नहीं है काबिल मेरे ,
मेरी जरुरत है जो वो मंजिल नजर आती नहीं !

डर है ......
कहीं खो ना जाऊ इस ज़माने के गहरे रिश्तों में ,
बंधकर इनमे ना तड़पता रहू मैं बेजल मछली की तरह !
दो चार कदम ही तो और चलना है जिंदगी बीताने को ,
मुझे ये जिंदगी गुजरती भी तो नजर आती नहीं !

मौत भी तो देखो ज़माने को वफ़ा करना सिखाती है,
नहीं कोई करार आने का मगर जरुर आती है !
मौत कहती है तुने देखा ही कहाँ है ज़िन्दगी को ,
मैं तो हु साथ तेरे मगर ज़िन्दगी क्यों आती नहीं !

पता नही ....
अभी कुछ और पल मैं जिऊंगा या मरूँगा और थोडा ,
मर मर के तो मैंने खोजा है ज़िन्दगी को बहुत !
मुझको तो यकीं है वो मुझको मिल सकती है मोड़ पे ,
मगर सीधी है मेरी डगर मुड़ के ये जाती नहीं !
Kausik
 

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